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शनिवार, 11 मार्च 2017

अल्लाह की बेज़बान बकरियां

ध्वस्त विरोधी शिविर, खंडित छत्र, अपने ही रक्त-स्वेद में सने धरती पर लोटते हुए महारथी, श्लथ-क्लांत कराहते हुए असंख्य पदातिक, भरतपुर लुट गयो रात मोरी अम्मा की रुदाली, भग्न रथ, दुम दबा कर भागती शत्रु सेना, लहराती विजय पताकाएँ, दमादम गूंजते हुए नगाड़े, बजती हुई विजय दुंदुभी, पाञ्चजन्य का गौरव-घोष, ...... अभी कुछ ही समय बीता है कि इन घटनाओं का कच्चा-पक्का सा भी अनुमान न लगा पाने के कारण सब कुछ जानने, जनाने और जनने का दावा करने वाला मीडिया मनमाना बोलने-कोसने-हाहाकार मचाने में लगा था। 11 मार्च की प्रातः 8 बजे तक इसकी कल्पना भी नहीं की जा रही थी। अगर कोई इस स्थिति का दावा कर रहा था तो माइकधारी सर्वज्ञ एंकर, न जाने किस कसौटी पर कस कर चुने गए विशेषज्ञ, दावा करने वालों की खिल्ली उड़ा रहे थे। अचानक हू-हू की सियार-ध्वनि करती उच्छ्वासें छोड़ती जमात फूल बरसाने लगी। यह प्रचण्ड चमत्कार कैसे हो गया ? जिस बाल्मीक, क्षत्रिय, ब्राह्मण, जाट, वैश्य, कुर्मी, कहार आदि के बूते चौपड़ बिछायी गयी थी, उसने ही बिसात उलट दी। जिस यादव वर्ग को अपनी पालकी ढोने के लिये बपौती मान कर चला जा रहा था, उसी ने पालकी खड्ड में दे मारी। जिस जाटव वर्ग को 'देश की मज़बूरी है भैंन जी जरूरी हैं' का अखण्ड कीर्तनिया माना गया था, उसी ने 'मंगल भवन अमंगल हारी, इस बारी भाजपा हमारी' का कीर्तन करना शुरू कर दिया। राष्ट्र के संस्थानों पर पहला हक़ मुसलमानों का है.....हम 100 सीटें मुसलमान को दे रहे हैं...... हम डेढ़ सौ सीटें अल्पसंख्यकों को दे रहे हैं...... जैसी बातें करने वालों की हिमायत छोड़ कर मुसलमानों की आधी जनसँख्या भी बड़े पैमाने पर इसी जमात में सम्मिलित हो गयी। तीन तलाक़ पर बरेलवी, देवबंदी आलिम भौंहे चढ़ाये, ज़बान लपलपाते, हाथ नचाते मुस्लिम पर्सनल लॉ को अस्पृश्य बताते हुए कथकली कर रहे थे। अब पता चला कि बुर्क़े में बंद अल्लाह की बेज़बान बकरियां भी ख़ामोश गुर्राहट रखती हैं। ढेर सारे विशेषज्ञ, विद्वान इस परमगौरवशाली विजय का विश्लेषण करेंगे। तरह तरह से इसे विकास की जीत बताएँगे अतः इस प्रचण्ड विजय का सत्य बताना, समाज तक पहुंचना आवश्यक है। विकास का सच्चा दावा, कृपया ध्यान रखें सच्चा दावा अखिलेश यादव का भी था, वह कैसे हवा हो गया ? चाचा, सौतेली माता, सौतेले भाई पर कालिख पोत कर अपनी क़मीज़ सबसे उजली बताने के चरखा दांव के दांत अखाड़े में क्यों बिखर गये ? हरिजनों की एक छत्र साम्राज्ञी की माया अंतर्ध्यान कैसे हो गयी ? बाल्मीक, क्षत्रिय, ब्राह्मण, जाट, जाटव, यादव, वैश्य, कुर्मी, कहार.....हर वर्ग ने अपने वर्ग के हित-अहित से ऊपर उठा कर भाजपा का कमल क्यों खिलाया ? इसका वास्तविक कारण केवल और केवल राष्ट्र के मूल स्वरुप की चिंता है। इस तेजस्वी व्यक्ति का नेतृत्व धर्मरक्षा करेगा, का अखण्ड विश्वास है। धर्मध्वजा उठाने वाले हाथों के लिए उत्तर प्रदेश में 5 साल के लिए अखण्ड राज्य प्रसन्नता का विषय है। राज्य सभा के बदलने जा रहे समीकरण आश्वस्त करते हैं, मगर यह पर्याप्त नहीं है। भाजपा के वरिष्ठ अधिकारियो! अल्लाह की जिन बेज़बान बकरियों ने घर के फाड़खाऊं शेरों की हुक्मउदूली कर तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ ख़ामोश गुर्राहट दिखाई है, उनके सरों पर लटकती तीन तलाक़ की तलवार हटानी आवश्यक है। अब समान नागरिक संहिता स्थापित करने का समय आ गया। आपको समाज ने इन वैचारिक भेड़ियों के दांत, नाख़ून तोड़ने के लिए आश्वस्तकारी बहुमत दिया है और यह आपको मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, कैराना की नागफनी को जड़ से उखाड़ने के लिये मिला है। तुफ़ैल चतुर्वेदी

बुधवार, 8 मार्च 2017

तारिक़ फ़तेह के ख़िलाफ़ मुस्लिम समाज में ज़बरदस्त आक्रोश

8 मार्च के दैनिक जागरण में बहुत छोटी सी एक कालम की ख़बर है। पाकिस्तानी मूल के लेखक तारिक़ फ़तेह के ख़िलाफ़ मुस्लिम समाज में ज़बरदस्त आक्रोश है। विरोध प्रदर्शनों के बाद उनके ख़िलाफ़ मंगलवार को कोतवाली देवबंद में मुक़दमा दर्ज कराया गया है। पुलिस ने धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में तारिक़ फ़तेह पर मामला दर्ज किया है। दूसरी घटना ....... अभी कोई 10-12 दिन पहले दिल्ली में जश्ने-रेख़्ता के प्रोग्राम में तारिक़ फ़तह साहब गए थे। वहां उनके साथ बदतमीज़ी हुई थी। तारिक़ फ़तह साहब पाकिस्तानी मूल के कैनेडा के नागरिक हैं। कट्टर राष्ट्रवादी हैं और भारत के तगड़े पक्षधर और पाकिस्तान के घोर विरोधी हैं। इस्लाम की कुरीतियों पर तगड़े मुखर हैं। सावधानीपूर्वक क़ुरआन, मुहम्मद जी को सहेज कर बाद के इस्लामी नेतृत्व को आतंक के लिये ज़िम्मेदार बताते हैं। इस्लामी इतिहास की शिया धारा को लगभग मानते हैं। तीन तलाक़, उसके उपजात हलाला जैसी बातों के विरोधी हैं। संक्षेप में कहा जाये तो वहाबी, बरेलवी विचारधारा के विरोध में हैं। उनके विरोधी जताते तो हैं मगर ऐसा होना पाप नहीं है। इस्लाम के ही शिया जैसे प्रमुख समूह के अतिरिक्त लगभग सभी हिंदू विचार समूह वहाबी, बरेलवी विचारधारा के विरोध में हैं। भारतीय संविधान भी इन बातों के विरोध में है। रेख़्ता दिल्ली के एक ग़ैरमुस्लिम व्यवसायी संजीव सर्राफ़ की आर्थिक सहायता से प्रारम्भ हुआ सिलसिला है जो उर्दू की विभिन्न विधाओं मुशायरा, बैतबाज़ी, ड्रामा इत्यादि पर काम करता है। उर्दू जिसके हिमायती इसे गंगा-जमनी संस्कृति बताते हैं, वाले इन घटनाओं पर मौन हैं। मुनव्वर राना जैसे घोर कलुषित सोच वाले अलबत्ता तारिक़ फ़तेह साहब के बारे में वाहियात बयान दे रहे हैं। मैं उर्दू संसार में शरीक अपने जैसे असंख्य ग़ैरमुस्लिम लोगों से पूछना चाहता हूँ कि गंगा-जमनी संस्कृति की यात्रा गंगा-जमुना की जगह दजला-फ़ुरात की यात्रा कैसे बन गयी है ? हमारी आर्थिक सहायता पर पलने-चलने वाले संस्कृतिक एकता के संस्थान घोर मुस्लिम कट्टरता के संस्थान कैसे बन जाते हैं ? हम अपनी मेहनत की कमाई के संस्थानों को राष्ट्रद्रोही गतिविधियों का अड्डा क्यों बनने दे रहे हैं ? हमारी उपस्थिति, वर्चस्वी स्थिति के बावजूद उर्दू के संस्थान घोर कलुषित विचारों को कैसे उपजा रहे हैं ? उर्दू के प्रमुख नामों में दिल्ली में सर्व श्री मुज़फ्फर हनफ़ी, शमीम हनफ़ी, ख़ालिद जावेद, शहपर रसूल जैसे लोग मौजूद हैं। रेख़्ता में ही फ़रहत अहसास, सालिम सलीम, कुमैल रिज़वी जैसे ढेरों लोग मौजूद हैं। सारे के सारे ऐसे चुप बैठे हैं जैसे गोद में साँप रक्खा हुआ हो। तारिक़ फ़तह साहब के पक्ष में किसी का एक भी बयान नहीं आया। क्या साम्प्रदायिक एकता का ठेका ग़ैरमुस्लिमों ने ही लिया हुआ है ? आप दबाव क्यों नहीं बनाते ? भारत भर की उर्दू गतिविधियों को सजाना, बनाना, फ़ंडिंग हम करते हैं और परिणाम राष्ट्रद्रोहियों का क़ब्ज़ा ? ? ? मुझे दिल्ली उर्दू एकेडमी का मख़मूर सईदी का काल याद आता है। मैं उर्दू एकेडमी के घटा मस्जिद वाले पुराने कार्यालय में उनके सामने बैठा हुआ था कि उनके स्टाफ़ के लगभग सभी लोग आये और छुट्टी माँगी। पता चला कि बाबरी मस्जिद के पक्ष में कोई प्रदर्शन हो रहा है। जिसमें सम्मिलित होने के लिये दिल्ली सरकार से वेतन पाने वाले उर्दू एकेडमी के कर्मचारी बाबरी मस्जिद ज़िंदाबाद करने चले गए। यह स्थिति बदली नहीं जानी चाहिये ? आज 79 वर्ष पहले हुए देश के विभाजन का विरोध करने वाली पाकिस्तान में जन्मी 67 वर्ष की प्रखर आवाज़ दबाई जा रही है। कभी सोचिये कि आख़िर तारिक़ फ़तह लड़ किससे रहे हैं ? उससे लाभ क्या राष्ट्रवादियों को नहीं हो रहा ? राष्ट्रवादियो! उनके पक्ष में कोई धरना-प्रदर्शन क्यों नहीं करते ? भाजपा, संघ विहिप, हिन्दू जागरण मंच के अधिकारियो, कार्यकर्ताओ! औरंगज़ेब से लड़ने वाले हर दारा शिकोह का भाग्य अकेले पड़ जाना तय है ? तुफ़ैल चतुर्वेदी