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शनिवार, 9 जुलाई 2016

अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविता के क्रम में मेरी कुछ पंक्तियाँ

हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय

उपनिषद्-पुराण महाभारत वेदामृत पान किया मैंने 
अपने पग काल-कंठ पर रख गीता का ज्ञान दिया मैंने 
संसार नग्न जब फिरता था आदिम युग में हो कर अविज्ञ
उस कालखंड का उच्चभाल मैं आर्य भट्ट सा खगोलज्ञ 
पृथ्वी के अन्य भाग का मानव जब कहलाता था वनचर 
मैं कालिदास कहलाता तब मेघदूत की रचना कर
जब त्रस्त व्याधियों से हो कर अगणित जीवन मिट जाते थे
अश्वनि कुमार, धन्वन्तरि, सुश्रुत मेरे सुत कहलाते थे


कल्याण भाव हर मानव का मेरे अंतरमन का किसलय 
हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय




मेरी भृकुटि यदि तन जाये तीसरा नेत्र मैं शंकर का 
ब्रह्माण्ड कांपता है जिससे वह तांडव हूँ प्रलयंकर का
मैं रक्तबीज शिरउच्छेदक काली की मुंडमाल हूँ मैं
मैं इंद्रदेव का तीक्ष्ण वज्र चंडी की खड्ग कराल हूँ मैं 
मैं चक्र सुदर्शन कान्हा का मैं कालक्रोध कल्याणी का
महिषासुर के समरांगण में मैं अट्टहास रुद्राणी का 
मैं भैरव का भीषण स्वभाव मैं वीरभद्र की क्रोध ज्वाल
असुरों को जीवित निगल गया मैं वह काली का अंतराल


देवों की श्वांसों से गूंजा करता है निश-दिन वह हूँ जय 
हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय





मैं हूँ शिवि,बलि सा दानशील मैं हरिश्चंद्र सा दृढप्रतिज्ञ
मैं भीष्म-कर्ण सा शपथधार मैं धर्मराज सा धर्मविज्ञ
मैं चतुष्नीति में पारंगत मैं यदुनंदन, यदुकुलभूषण 
मैंने ही राघव बन मारे मारीच-ताड़का-खर-दूषण
मैं अजय-धनुर्धन अर्जुन हूँ मैं भीम प्रचंड गदाधारी 
अभिमन्यु व्यूहभेदक हूँ मैं भगदत्त समान शूलधारी 
मैं नागपंचमी के दिन यदि नागों को दूध पिलाता हूँ 
तो आवश्यकता पड़ने पर जनमेजय भी बन जाता हूँ 


अब भी अन्याय हुआ यदि तो कर दूंगा धरती शोणितमय 
हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय





शत-प्रबल-खड्गरव वेगयुक्त आघातों को मैंने झेला
भीषण शूलों की छाया में मेरा जीवन पल-पल खेला
संसार-विजेता की आशा मेरे ही आगे धूल हुई 
यवनों की वह अजेय क्षमता मेरे ही पग पर फूल हुई
मेरी अजेय असि की गाथा संवत्सर का क्रम सुना रहा
यवनों पर मेरी विजयकथा बलिदानों का क्रम बता रहा
पर नहीं उठायी खड्ग कभी मैंने दुर्बल-पीड़ित तन पर
अपने भाले की धार न परखी मैंने आहत जीवन पर



इतिहास साक्षी दुर्ग नहीं, हैं बने ह्रदय मेरा आलय
हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय





युग-युग से जिसे संजोये हूँ बाप्पा के उर की ज्वाल हूँ मैं
कासिम के सर पर बरसी वह दाहर की खड्ग विशाल हूँ मैं
अस्सी घावों को तन पर ले जो लड़ता है वह शौर्य हूँ मैं
सिल्यूकस को पददलित किया जिसने असि से वह मौर्य हूँ मैं
कौटिल्यह्रदय की अभिलाषा मैं चन्द्र गुप्त का चन्द्रहास
चमकौर दुर्ग पर चमका था उस वीर युगल का मैं विलास
रणमत्त शिवा ने किया कभी निश-दिन मेरा रक्ताभिषेक
गोविन्द, हकीकत राय सहित जिस पथ पर पग निकले अनेक


वो ज्वाल आज भी धधक रही है तो इसमें कैसा विस्मय
हिन्दू जीवन हिन्दू तन-मन रग-रग हिन्दू मेरा परिचय


बर्मा के बौद्ध भिक्षु पूज्य अशिन बिराथु के चरणों में 


मैं शुद्ध, बुद्ध, चैतन्य-आत्मा अंतर का वैज्ञानिक था 
जो व्योम-ज्वाल बन कर उड़ता जाये ऐसा वैमानिक था 
मैं शांति अहिंसा के कारण महलों को तज कर वन निकला 
मेरे पीछे-पीछे हिंसा से व्याकुल जन-जीवन निकला 
गांधार, चीन, ईरान, स्याम, बर्मा, श्रीलंका आलिंगित 
हर ओर शांति की ध्वजा, हर इक धरती पर मेरे पग चिन्हित 
धीरे-धीरे सारा भूमण्डल ही अनुगामी हो आया 
हर आहत पीड़ा से व्याकुल मानव ने मुझको अपनाया 


तुमने मेरी प्रतिमाओं से जड़वाए अपने शौचालय 
बदला लेने को आतुर हूँ तो है इसमें कैसा विस्मय 

हिंदू जीवन हिंदू तन-मन रगरग हिंदू मेरा परिचय 

तुफ़ैल चतुर्वेदी 

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