चौबीस घंटे के ख़बरिया चैनलों की अपनी मुसीबत है। हर पल कुछ न कुछ करना होगा। अलादीन का जिन्न सा पीछे पड़ा रहता है कि कोई काम बताओ। चौबीस घंटे बिज़ी रखना मामूली काम नहीं है। कभी बोर वैल में गिरे बच्चे के पीछे 48 घंटों तक कैमरामैन समेत एंकर को घुसे रहना पड़ता है। कभी लंका में वो जगह मिल गयी....... जिसे हनुमान जी ने जलाया था, को दाढ़ी-मूंछ से भरे मुंह को मेंढक की तरह गलफड़े फुला कर बताना पड़ता है। कभी 24 फुट के कंकाल की घोषणा करनी पड़ती है। सामान्यतः ऐसे बांगड़ू मुद्दे 2 दिन तक तो खेंचे ही जाते हैं। गम्भीर मुद्दे इससे अधिक समय पाने के अधिकारी होते हैं। क्षमता और आवश्यकता के अनुसार 4 से 7 दिन तक उनकी परिधि होती है। मगर पहली बार दिखाई दे रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में शरीयत को चुनौती का मामला मीडिया ने पूरे एक दिन भी नहीं चलाया। आइये जानें कि शरिया है क्या और इस पर नया विवाद कैसे शुरू हुआ ?
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में 1973 में बनाया गया था। ये सुन्नी मुसलमानों की अच्छी बड़ी संख्या के लिये उनके निजी विषयों को इस्लामी क़ानूनों के हिसाब से चलने के लिये बनाया गया। इस की जड़ें1857 में मुग़ल सत्ता की फ़ाइनल तेरहवीं के बाद अंग्रेज़ों द्वारा मुसलमानों के लिये बनायी गयी एंग्लो-मुहमडन अदालतों के फ़ैसलों में हैं। इसके अंतर्गत निकाह, तलाक़, पुनर्निकाह और उसके लिये अनिवार्य अरबी रस्म हलाला, वसीयत, पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा आते हैं। इसके बनते समय ही ताहिर महमूद , आरिफ़ मुहम्मद ख़ान जैसे विभिन्न इस्लामी विद्वानों ने इसका विरोध किया था। { ज्ञातव्य है सुन्नी मुसलमानों के ही कई वर्ग उदाहरण के लिये कच्छी मेमन इसके अंतर्गत नहीं आते और उनके निजी विषय हिन्दू लॉ के अनुसार निर्धारित होते हैं। पाकिस्तान के आंदोलन के सबसे मुखर मुस्लिम भाग अहमदिया इससे इस कारण बाहर रखे गये हैं कि सुन्नी उन्हें मुसलमान नहीं मानते। शिया समाज का अपना शिया पर्सनल लॉ है }
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में 1973 में बनाया गया था। ये सुन्नी मुसलमानों की अच्छी बड़ी संख्या के लिये उनके निजी विषयों को इस्लामी क़ानूनों के हिसाब से चलने के लिये बनाया गया। इस की जड़ें1857 में मुग़ल सत्ता की फ़ाइनल तेरहवीं के बाद अंग्रेज़ों द्वारा मुसलमानों के लिये बनायी गयी एंग्लो-मुहमडन अदालतों के फ़ैसलों में हैं। इसके अंतर्गत निकाह, तलाक़, पुनर्निकाह और उसके लिये अनिवार्य अरबी रस्म हलाला, वसीयत, पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा आते हैं। इसके बनते समय ही ताहिर महमूद , आरिफ़ मुहम्मद ख़ान जैसे विभिन्न इस्लामी विद्वानों ने इसका विरोध किया था। { ज्ञातव्य है सुन्नी मुसलमानों के ही कई वर्ग उदाहरण के लिये कच्छी मेमन इसके अंतर्गत नहीं आते और उनके निजी विषय हिन्दू लॉ के अनुसार निर्धारित होते हैं। पाकिस्तान के आंदोलन के सबसे मुखर मुस्लिम भाग अहमदिया इससे इस कारण बाहर रखे गये हैं कि सुन्नी उन्हें मुसलमान नहीं मानते। शिया समाज का अपना शिया पर्सनल लॉ है }