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सोमवार, 13 जून 2016

"अति पवित्र " इस्लामिक प्रथा हलाला

चौबीस घंटे के ख़बरिया चैनलों की अपनी मुसीबत है। हर पल कुछ न कुछ करना होगा। अलादीन का जिन्न सा पीछे पड़ा रहता है कि कोई काम बताओ। चौबीस घंटे बिज़ी रखना मामूली काम नहीं है। कभी बोर वैल में गिरे बच्चे के पीछे 48 घंटों तक कैमरामैन समेत एंकर को घुसे रहना पड़ता है। कभी लंका में वो जगह मिल गयी....... जिसे हनुमान जी ने जलाया था, को दाढ़ी-मूंछ से भरे मुंह को मेंढक की तरह गलफड़े फुला कर बताना पड़ता है। कभी 24 फुट के कंकाल की घोषणा करनी पड़ती है। सामान्यतः ऐसे बांगड़ू मुद्दे 2 दिन तक तो खेंचे ही जाते हैं। गम्भीर मुद्दे इससे अधिक समय पाने के अधिकारी होते हैं। क्षमता और आवश्यकता के अनुसार 4 से 7 दिन तक उनकी परिधि होती है। मगर पहली बार दिखाई दे रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में शरीयत को चुनौती का मामला मीडिया ने पूरे एक दिन भी नहीं चलाया। आइये जानें कि शरिया है क्या और इस पर नया विवाद कैसे शुरू हुआ ?

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल में 1973 में बनाया गया था। ये सुन्नी मुसलमानों की अच्छी बड़ी संख्या के लिये उनके निजी विषयों को इस्लामी क़ानूनों के हिसाब से चलने के लिये बनाया गया। इस की जड़ें1857 में मुग़ल सत्ता की फ़ाइनल तेरहवीं के बाद अंग्रेज़ों द्वारा मुसलमानों के लिये बनायी गयी एंग्लो-मुहमडन अदालतों के फ़ैसलों में हैं। इसके अंतर्गत निकाह, तलाक़, पुनर्निकाह और उसके लिये अनिवार्य अरबी रस्म हलाला, वसीयत, पैतृक सम्पत्ति का बंटवारा आते हैं। इसके बनते समय ही ताहिर महमूद , आरिफ़ मुहम्मद ख़ान जैसे विभिन्न इस्लामी विद्वानों ने इसका विरोध किया था। { ज्ञातव्य है सुन्नी मुसलमानों के ही कई वर्ग उदाहरण के लिये कच्छी मेमन इसके अंतर्गत नहीं आते और उनके निजी विषय हिन्दू लॉ के अनुसार निर्धारित होते हैं। पाकिस्तान के आंदोलन के सबसे मुखर मुस्लिम भाग अहमदिया इससे इस कारण बाहर रखे गये हैं कि सुन्नी उन्हें मुसलमान नहीं मानते। शिया समाज का अपना शिया पर्सनल लॉ है }


इसका प्रारम्भ इस तरह हुआ। सायरा बानो को उसके पति ने तीन बार तलाक़ कहा और इस्लामी क़ानून के अनुसार वो अपने पति से अलग कर दी गयी। मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से तलाक़ हो गया और सायरा बानो को अपना ताम-टंडीरा उठा कर जहाँ सींग समाये चला जाना चाहिये। यदि उसका पति अपने फ़ैसले को पलटना चाहता है तो सायरा बानो को हलाला से गुज़रना पड़ेगा। हलाला भी मुसलमान स्त्रियों के लिये तीन तलाक़ जैसी ही घोर अन्यायपूर्ण अरबी रस्म है। कोई मुसलमान पति क्रोध में, नशे में या किसी भी कारण से अपनी बीबी को तीन तलाक़ कह देता है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से वो पत्थर की लकीर हो जाता है। बाद में उसे पछतावा हो तो बीबी को किसी और मुस्लिम पुरुष से निकाह, एक रात के अनिवार्य यौन संपर्क और अगले दिन या जैसी उसके तात्कालिक शौहर की इच्छा हो उतने दिनों के बाद, तलाक़ की रस्म से गुज़रना पड़ता है। दुखियारी औरत के इतनी सारी यातना को झेलने के बाद ही उसका पछताया हुआ पति उससे दुबारा निकाह कर सकता है।

ये रस्म कितनी रसीली है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाएं। मुझे पाकिस्तान टी.वी. पर हलाला के विषय पर इसी साल देखी एक बहस याद आ रही है। उसमें एक इस्लामी आलिम बोले " बहन मैं अभी मुल्क से बाहर हूँ। लौटते ही इंशाअल्लाह आपकी ख़िदमत करूँगा।" इसमें विशेष बात यह है कि तलाक़ में किया-धरा उसके पति का होता है मगर झेलना बीबी को पड़ता है। क्रोध, नशे या किसी और कारण से अपनी बीबी को तीन तलाक़ पति ने दिये। न्याय तो यह कहता है कि ग़लती करने वाले को भुगतनी चाहिये। हलाला उसके पति का होना चाहिए। एक रात या जितनी भी क्षमता और आवश्यता हो।


मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत-उल-उलमा-ए-हिन्द , दार-उल-उलूम देवबंद जैसे सभी संस्थान इस विषय के विरोध में तो हैं मगर इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट जा कर क़ानूनी बहस नहीं कर रहे। ऐसा उन्होंने शाह बानो केस में भी नहीं किया था। इसका कारण यह है कि ऐसे किसी विषय को कोर्ट में चुनौती देते ही विवादों का पिटारा खुल जायेगा। जिस शरीयत की यह कह कर दुहाई दी जा रही है कि यह ख़ुदाई क़ानून है और क़ुरआन सम्मत है, पर चर्चा करना मुल्ला जमात के लिये ख़तरनाक है। ऐसा होते ही इस्लाम में पुरुषों के मनमाने विशेषाधिकार मांगने-बरतने, औरतों का इस्लाम में निम्न स्तर, औरत की आधी गवाही, बालिग़ मुसलमान पुरुष की बच्ची से शादी, मनमाने यौन व्यवहार, लौंडी रखने जैसे न जाने कितने सांप इस पिटारे से बाहर आ जायेंगे। उनके लिये सबसे सुरक्षित मार्ग राजनैतिक दलों पर दबाव ही बचता है। शाहबानो का मामला भी मुल्ला जमात ने राजीव गांधी पर दबाव डाल कर अपने पक्ष में क़ानून बनवा कर सलटाया था।



मैं यहाँ एक गम्भीर सवाल पूछना चाहता हूँ। अगर तीन तलाक़ कहने से तलाक़ हो जाता है तो तीन बार कहने से निकाह क्यों नहीं हो सकता ? कोई साहब पाकिस्तान की पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी ख़ार तक मेरे तीन निकाह पहुंचा दें। निकाह निकाह निकाह जैसे उनके दिन फिरे वैसे सबके फिरें सात घड़े अमृत भरे... दो कहते के.... दो सुनते के बचे तीन तो वो तो मेरे और हिना रब्बानी के होंगे ही होंगे और क्या वाह जी वाह

तुफ़ैल चतुर्वेदी

4 टिप्‍पणियां:

  1. क्या सर, हीना रब्ब्नी खार पर तो मेरी नजर थी ...............

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  2. हिना रब्बानी ही क्यों
    और भी बहुत है
    लेकिन तलाक के मसले का इलाज केवल सामान नागरिक कानून है जैसा की ईसाई देशों में है

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  3. अाप बिल्कुल सही कह रहे हैं। अाशा करता हुन कि मोदी जी इस पर कार्यवाही करेंगे।

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