........................... मोसुल में मूसल....................
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट जिसे आइ.एस.आइ.एस या दाश भी कहते हैं, का इस्लामी ख़िलाफ़त का सपना बिखरने को है। रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन, अमरीका की लगातार बमबारी के कारण इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े से अधिकतर क्षेत्र निकल चुके हैं और सीरिया तथा ईराक़ के राज्यों पर अपनी जकड़ और पकड़ बनाये इस्लामिक स्टेट के गढ़ मोसुल पर लड़ाई सिमट कर आ खड़ी हुई है। बंधे हाथ वाले विपक्षी सैनिकों के गले काटने के वीडियो बनाने वाले, नृशंस हत्या करते समय अल्लाहो-अकबर के नारे लगाने वाले आइ.एस.आइ.एस के सारे तीसमार खां मोसुल छोड़ कर भाग गए हैं। इस्लामिक स्टेट के पास अपने लड़ाकुओं को देने के लिये पैसा नहीं बचा है। उसके स्रोत सूखते जा रहे हैं और दूसरे देशों से आये इस्लामी जिहादी अपने देशों को वापस लौट रहे हैं।
इस घर वापसी से एक और बड़ी समस्या मुंह फाड़े आ खड़ी हुई है। इस्लामिक स्टेट के लिये अपने घरों को छोड़ कर सीरिया, ईराक़ जाने वाले लोग वैचारिक रूप से विषाक्त हैं। यह अपने घरों से निकले ही इसी लिये थे कि इन्होंने क़ुरआन के दर्शन "काफ़िर वाजिबुल क़त्ल" को उचित माना था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह "क़त्ताल फ़ी सबीलिल्लाह" { अल्लाह की राह में क़त्ल करो } "जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह" { अल्लाह की राह में जिहाद करो } के नृशंस चिंतन को पूरा करने अपने घरों, देशों को छोड़ कर इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों तक आये थे। यह लोग बढ़िया सुताई, कुटाई, धुनाई से शारीरिक रूप से पस्त हो गए हैं मगर इनकी छिताई, सफ़ाई नहीं हुई है। इनकी खोपड़ियों में अब भी वही ज़हर भरा हुआ है।
अब यह लोग दुबई, क़तर इत्यादि अरब देशों से अपने देशों में लौटने का प्रयास कर रहे हैं। इनको सभ्य देशों में शरण देने का अर्थ है कि सभ्य समाज अपने बीच वैचारिक दरिंदे छोड़ने का कार्य करे। आपने कभी सड़क के किनारे लगे पेड़ों पर आकाश बेल फैलती देखी होगी। परोपजीवी आकाश बेल पेड़ के लिये कैंसर है। इसका एकमात्र इलाज यह होता है कि पेड़ की सारी डालियाँ काट दी जाती हैं और वृक्ष फिर से अपनी शाखायें बढ़ाता है। सभ्य समाज के पास कड़े क़दम उठाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। सही निर्णय लेने की घड़ी आ गयी है। मर्मान्तक प्रहार, अंतिम प्रहार का कोई विकल्प नहीं होता। मोसुल और मूसल एक ही स्रोत से आने वाले शब्द हैं। इसके अगले शब्द और समस्या का भी इलाज मूसल ही है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट जिसे आइ.एस.आइ.एस या दाश भी कहते हैं, का इस्लामी ख़िलाफ़त का सपना बिखरने को है। रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन, अमरीका की लगातार बमबारी के कारण इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े से अधिकतर क्षेत्र निकल चुके हैं और सीरिया तथा ईराक़ के राज्यों पर अपनी जकड़ और पकड़ बनाये इस्लामिक स्टेट के गढ़ मोसुल पर लड़ाई सिमट कर आ खड़ी हुई है। बंधे हाथ वाले विपक्षी सैनिकों के गले काटने के वीडियो बनाने वाले, नृशंस हत्या करते समय अल्लाहो-अकबर के नारे लगाने वाले आइ.एस.आइ.एस के सारे तीसमार खां मोसुल छोड़ कर भाग गए हैं। इस्लामिक स्टेट के पास अपने लड़ाकुओं को देने के लिये पैसा नहीं बचा है। उसके स्रोत सूखते जा रहे हैं और दूसरे देशों से आये इस्लामी जिहादी अपने देशों को वापस लौट रहे हैं।
इस घर वापसी से एक और बड़ी समस्या मुंह फाड़े आ खड़ी हुई है। इस्लामिक स्टेट के लिये अपने घरों को छोड़ कर सीरिया, ईराक़ जाने वाले लोग वैचारिक रूप से विषाक्त हैं। यह अपने घरों से निकले ही इसी लिये थे कि इन्होंने क़ुरआन के दर्शन "काफ़िर वाजिबुल क़त्ल" को उचित माना था। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह "क़त्ताल फ़ी सबीलिल्लाह" { अल्लाह की राह में क़त्ल करो } "जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह" { अल्लाह की राह में जिहाद करो } के नृशंस चिंतन को पूरा करने अपने घरों, देशों को छोड़ कर इस्लामिक स्टेट के क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों तक आये थे। यह लोग बढ़िया सुताई, कुटाई, धुनाई से शारीरिक रूप से पस्त हो गए हैं मगर इनकी छिताई, सफ़ाई नहीं हुई है। इनकी खोपड़ियों में अब भी वही ज़हर भरा हुआ है।
अब यह लोग दुबई, क़तर इत्यादि अरब देशों से अपने देशों में लौटने का प्रयास कर रहे हैं। इनको सभ्य देशों में शरण देने का अर्थ है कि सभ्य समाज अपने बीच वैचारिक दरिंदे छोड़ने का कार्य करे। आपने कभी सड़क के किनारे लगे पेड़ों पर आकाश बेल फैलती देखी होगी। परोपजीवी आकाश बेल पेड़ के लिये कैंसर है। इसका एकमात्र इलाज यह होता है कि पेड़ की सारी डालियाँ काट दी जाती हैं और वृक्ष फिर से अपनी शाखायें बढ़ाता है। सभ्य समाज के पास कड़े क़दम उठाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। सही निर्णय लेने की घड़ी आ गयी है। मर्मान्तक प्रहार, अंतिम प्रहार का कोई विकल्प नहीं होता। मोसुल और मूसल एक ही स्रोत से आने वाले शब्द हैं। इसके अगले शब्द और समस्या का भी इलाज मूसल ही है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
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