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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

मोसुल के पास एक टीले में दफ़्न 39 अभागे भारतीयों की लाशें मिल गयी हैं। उनके लम्बे बालों से पहचान हुई है कि मारे गए अधिकाँश लोग सिक्ख थे। अपनी धरती से दूर पैसा कमाने गये लोगों की मौत दुखद है। हम भारतीयों की आक्रोश से मुट्ठियाँ भिंच जानी चाहिए थीं मगर हुआ यह है कि टी वी की बहसों के लिये मसाला मिल गया है। यह बहसें हो रही हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पूछा है कि जून 2014 से जुलाई 2017 के बीच सात बार विदेशमंत्री ने कहा है कि अपहृत भारतीय जीवित हैं। सरकार को बताना चाहिए कि वह क्यों झूठा आश्वासन दे रही थी ? आई एस आई एस की विचारधारा से प्रेरित कटटरपंथियों के लोनर वुल्फ़ अटैक { अकेले आतंकवादी का हमला } से निबटने का तरीक़ा अमरीका और योरोप समेत दुनिया के कई देशों को समझ नहीं आ रहा। आई एस आई एस से बड़ा ख़तरा ईराक़ और सीरिया से भाग कर पूरी दुनिया में फैल गये उसके लडके और उनकी कट्टर विचारधारा है। भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ हालाँकि देश में आई एस आई एस के अस्तित्व से इंकार करती हैं मगर कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों में आई एस आई एस का झंडा लहराना आम बात हो गयी है। एक मात्र जीवित बचे हरजीत मसीह ने फिर से मीडिया के सामने आ कर बताया कि वो और मारे गए 39 भारतीयों के साथ 60 बांग्लादेशी भी एक ईराक़ी कम्पनी में काम करते थे। 2014 में जब ईराक़ पर आतंकियों ने क़ब्ज़ा किया तो एक रात क़रीब नौ बजे सभी लोगों को गाड़ियों में बिठा कर सुनसान जगह पर ले गए। यहाँ दो दिन रखने के बाद बांग्लादेश के नागरिकों को भारतीयों से अलग कर दिया गया और मेरे सहित सभी भारतीयों को गोली मार दी गयी। क़िस्मत से एक गोली मेरी टांग छू कर निकल गयी और मैं बच कर भाग निकला। आतंकियों ने मुझे फिर पकड़ लिया। मैंने खुद को बांग्लादेशी और नाम अली बताया। वहां से मुझे बांग्लादेशी कैम्प भेजा गया और फिर मैं भारत लौट आया। यहाँ एक बात स्पष्ट दिखाई दे रही है कि हर बहस, लेख से मसीह का यह वक्तव्य नदारद है कि "बांग्लादेश के नागरिकों को भारतीयों से अलग कर दिया गया और मेरे सहित सभी भारतीयों को गोली मार दी गयी" आख़िर उन्होंने अजनबी भाषा बोलने वाले, अपरिचित 39 भारतीयों को क्यों मारा और बंग्लादेशियों को क्यों छोड़ दिया ? यह कोई पहली घटना नहीं है। भारत की धरती पर तो शताब्दियों से ऐसे नृशंस नरसंहार चल रहे हैं। गुरु नानकदेव जी ने बाबर के पैशाचिक हत्याकांडों को जम कर कोसा है। नवीं पादशाही गुरु तेग बहादुर जी की साथियों सहित शहीदी, दसवीं पादशाही गुरु गोविंद सिंह जी के 2 बच्चों को मुसलमान न बनने पर दीवार में जीवित चुना जाना, वीर हक़ीक़त राय की बोटियाँ नोच-नोच कर बलिदान करना, वीर बंदा बैरागी के छोटे से बच्चे का कलेजा उनके मुँह ठूंसना फिर उनके टुकड़े-टुकड़े कर मारा जाना इतिहास के माथे पर अंकित है। 39 केशधारियों की दुखद हत्या विषयक लेख के इस मोड़ पर कुछ प्रश्न मन में कौंध रहे हैं। अभी कैनेडा के प्रधानमंत्री के भारत आगमन पर कैनेडा के ही ख़ालिस्तान समर्थक व्यवसायी को उनकी एम्बेसी के निमंत्रण की ख़ासी आलोचना हुई है। गुप्तचर एजेंसियों को इस की भी सूचना है कि कैनेडा, अमरीका, ब्रिटेन सहित अनेकों देशों में पाकिस्तान की फंडिंग से ख़ालिस्तान के आंदोलन को फिर से खड़ा करने की जीतोड़ कोशिश हो रही है और तथाकथित खाड़कुओं की पाकिस्तान में ट्रेनिंग चल रही है। ख़ालिस्तान के पक्ष में आंदोलन करने वाले अंड-बंड कमांडो फ़ोर्स के मरजीवड़ों से सवाल पूछना चाहूंगा कि क्या तुम्हारी आँखें यह नहीं देख पा रही हैं कि मारे गए ये 39 अभागे लोग सिक्ख थे ? क्या तुम समझ पा रहे हो कि इन लोगों की मौत उसी कारण हुई जिस कारण गुरु तेग बहादुर जी का दिल्ली में शीश उतारा गया था। तुम्हें अंदाज़ा है न कि जिस कारण साहबज़ादे दीवार में चुने गए थे उसी कारण ये 39 लोग भी मार दिए गए ? तुम्हें कभी सूझा है कि वो दो छोटे बच्चे ज़िंदा दीवार में चुने जाने पर कैसे तड़प-तड़प कर मरे होंगे ? उनकी जान कैसे घुट-घुट कर निकली होगी ? जिस धर्म की रक्षा के लिये इतने बलिदान हुए उस की विरोधी विचारधारा के साथ खड़े होते हुए तुम्हारे पैर नहीं टूट गये ? जिस धर्म के लिये गुरुओं ने बलिदान दिए, उसके शत्रुओं से पैसे लेते हुए तुम्हारे हाथ नहीं गल गये ? तुम गुरु गोविंद सिंह जी की यह वाक भूल गए कि "तेल में हाथ डाल कर तिलों में हाथ डालने पर जितने तिल चिपकें, उतनी क़सम भी तुर्क खाये तो भरोसा मत करना" । अब धर्म पर ही नहीं अपितु विश्व भर पर संकट आया है और रक्षा के लिये उठ खड़े होने का समय है। तुफ़ैल चतुर्वेदी

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