दोस्तो सार्वजनिक जीवन के स्थापित लोगों में एक मर्द निकल आया। जी हाँ मैं त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय की बात कर रहा हूँ। जिन्होंने याक़ूब मेनन जैसे दुर्दांत हत्यारे और उसके हिमायतियों के बारे में सच कह दिया।
उसके पापों का चिटठा ये है। याक़ूब मेनन अपने पापी ख़ानदान सहित मुंबई के सीरियल बम धमाकों जिनमें 270 लोग मारे गए और हज़ारों लोग बुरी तरह घायल हुए, में सम्मिलित था। याक़ूब मेनन का अपराध हताहतों की संख्या की दृष्टि से ही बहुत बड़ा नहीं है बल्कि देशद्रोह भी है। उसने, उसके बाप, माँ, भाई, भाभी अन्य परिवारीय लोगों ने अपनी तरफ से यथासंभव भारत को चोट पहुँचाने का भरसक प्रयास किया। याक़ूब मेनन और उसके परिवार पर सेशन से शुरू हो कर हाई कोर्ट में अपील, सुप्रीम कोर्ट में अपील तक मुकद्दमा चला। इसके परिवार में कइयों को सज़ाएं हुईं और याक़ूब को हर जगह से फांसी की सजा हुई। जिसके बाद राष्ट्रपति से क्षमादान की याचिका और उसे निरस्त कर देने के बाद फिर से पुनरीक्षण याचिका डाली गयी। वो भी निरस्त हुई। रात के 2 बजे कुछ राजनीति प्रेरित कुटिल वकीलों ने फिर से …… के घोड़े खोले।
ऐसे दुष्ट प्राणी को मिटटी में दबाने के समय लाखों लोगों का उपस्थित होना क्या कह रहा है ? आख़िर एक देशद्रोही के जनाज़े में सम्मिलित होने वाले लोग कुछ सोच कर तो अपने काम पर न जा कर क़ब्रिस्तान पहुंचे होंगे ? उनके मानस में कोई तो अंतर्धारा बह रही होगी ? उस अंतर्धारा की पहचान और वो देश, राष्ट्र के लिए हानिकर है तो उसकी रोकथाम राजनेता नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
आख़िर लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, आज़म खान, अबू आज़मी, कांग्रेस के सचिन पायलेट, शकील अहमद, मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अकबरुद्दीन ओवैसी-असदुद्दीन ओवैसी, साम्यवादी पार्टी के प्रकाश करात, वृंदा करात, आप के अरविन्द केजरीवाल, आप से निष्काशित प्रशांत भूषण, ममता बनर्जी जैसे मुस्लिम वोटों के लिये जीभ लपलपाते राजनेता उसके पक्ष में अकारण तो लार नहीं टपकाने लगे।
फांसी लगने के बाद याक़ूब मेनन का शरीर पूरा उसके घर वालों को सौंप दिया गया। जिसके दफ़नाते समय लाखों मुसलमान एकत्र हुए। यहाँ ये ध्यान में आना आवश्यक है कि इन हत्यारों के किये विस्फोटों के बाद सैकड़ों लोगों के छिन्न-भिन्न शव मिले। जिनके टुकड़े इकट्ठे कर के अंतिम संस्कार किया गया। सैकड़ों घायल हुए लोग आज भी विकलांग का जीवन जी रहे हैं। देवबंदी मुल्लाओं ने तो कहा था आतंकवादियों की नमाज़े-जनाज़ा जायज़ नहीं है। वो सारे कहाँ हैं ? बोलते क्यों नहीं ? मुंह में दही जमा हुआ है या ज़बान बिल्ली ले गयी ? आज ये सब तो ऐसे चुप बैठे हैं जैसे गोद में सांप बैठा हो और हिलना मना हो।
तो बंधुओ जो बोल रहे हैं उनके पक्ष आवाज़ नहीं उठानी चाहिये। क्या ये समय त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय का आभार प्रकट करने, उनकी स्तुति गान का नहीं है ? इसी तरह से समाज अपनी आवाज़ ऊँची नहीं करेगा तो कैसे राषट्रीय-धारा के स्वर सामने आएंगे ? और कुछ नहीं तो महामहिम तथागत राय के चरणों में एक अकिंचन लेखक प्रणाम तो कर ही सकता है। महामहिम कृतज्ञ राष्ट्र का प्रणाम स्वीकारिये
तुफ़ैल चतुर्वेदी
उसके पापों का चिटठा ये है। याक़ूब मेनन अपने पापी ख़ानदान सहित मुंबई के सीरियल बम धमाकों जिनमें 270 लोग मारे गए और हज़ारों लोग बुरी तरह घायल हुए, में सम्मिलित था। याक़ूब मेनन का अपराध हताहतों की संख्या की दृष्टि से ही बहुत बड़ा नहीं है बल्कि देशद्रोह भी है। उसने, उसके बाप, माँ, भाई, भाभी अन्य परिवारीय लोगों ने अपनी तरफ से यथासंभव भारत को चोट पहुँचाने का भरसक प्रयास किया। याक़ूब मेनन और उसके परिवार पर सेशन से शुरू हो कर हाई कोर्ट में अपील, सुप्रीम कोर्ट में अपील तक मुकद्दमा चला। इसके परिवार में कइयों को सज़ाएं हुईं और याक़ूब को हर जगह से फांसी की सजा हुई। जिसके बाद राष्ट्रपति से क्षमादान की याचिका और उसे निरस्त कर देने के बाद फिर से पुनरीक्षण याचिका डाली गयी। वो भी निरस्त हुई। रात के 2 बजे कुछ राजनीति प्रेरित कुटिल वकीलों ने फिर से …… के घोड़े खोले।
ऐसे दुष्ट प्राणी को मिटटी में दबाने के समय लाखों लोगों का उपस्थित होना क्या कह रहा है ? आख़िर एक देशद्रोही के जनाज़े में सम्मिलित होने वाले लोग कुछ सोच कर तो अपने काम पर न जा कर क़ब्रिस्तान पहुंचे होंगे ? उनके मानस में कोई तो अंतर्धारा बह रही होगी ? उस अंतर्धारा की पहचान और वो देश, राष्ट्र के लिए हानिकर है तो उसकी रोकथाम राजनेता नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
आख़िर लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, आज़म खान, अबू आज़मी, कांग्रेस के सचिन पायलेट, शकील अहमद, मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अकबरुद्दीन ओवैसी-असदुद्दीन ओवैसी, साम्यवादी पार्टी के प्रकाश करात, वृंदा करात, आप के अरविन्द केजरीवाल, आप से निष्काशित प्रशांत भूषण, ममता बनर्जी जैसे मुस्लिम वोटों के लिये जीभ लपलपाते राजनेता उसके पक्ष में अकारण तो लार नहीं टपकाने लगे।
फांसी लगने के बाद याक़ूब मेनन का शरीर पूरा उसके घर वालों को सौंप दिया गया। जिसके दफ़नाते समय लाखों मुसलमान एकत्र हुए। यहाँ ये ध्यान में आना आवश्यक है कि इन हत्यारों के किये विस्फोटों के बाद सैकड़ों लोगों के छिन्न-भिन्न शव मिले। जिनके टुकड़े इकट्ठे कर के अंतिम संस्कार किया गया। सैकड़ों घायल हुए लोग आज भी विकलांग का जीवन जी रहे हैं। देवबंदी मुल्लाओं ने तो कहा था आतंकवादियों की नमाज़े-जनाज़ा जायज़ नहीं है। वो सारे कहाँ हैं ? बोलते क्यों नहीं ? मुंह में दही जमा हुआ है या ज़बान बिल्ली ले गयी ? आज ये सब तो ऐसे चुप बैठे हैं जैसे गोद में सांप बैठा हो और हिलना मना हो।
तो बंधुओ जो बोल रहे हैं उनके पक्ष आवाज़ नहीं उठानी चाहिये। क्या ये समय त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय का आभार प्रकट करने, उनकी स्तुति गान का नहीं है ? इसी तरह से समाज अपनी आवाज़ ऊँची नहीं करेगा तो कैसे राषट्रीय-धारा के स्वर सामने आएंगे ? और कुछ नहीं तो महामहिम तथागत राय के चरणों में एक अकिंचन लेखक प्रणाम तो कर ही सकता है। महामहिम कृतज्ञ राष्ट्र का प्रणाम स्वीकारिये
तुफ़ैल चतुर्वेदी
आपने बिल्कुल सत्य कहा सर... एक आतंकवादी के लिए छाती पीट-पीटकर मातम मनाने वाले भी राष्ट्रद्रोही ही हैं... इनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए था, जैसा एक देशद्रोही के साथ होना चाहिए... एक आतंकवादी का अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए अभिनन्दन करने वाले नीच, नराधम क्या सिद्ध करना चाहते हैं? जिनके लिए मानवता का कोई मोल नहीं, उनके लिए मानवता की दुहाई देने वाले पाखण्डियों को समाज के सामने बेनकाब करने वाले राष्ट्रहितैषी जन निःसंदेह प्रशंसा के पात्र हैं और नमन के योग्य हैं...
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सत्य कहा सर... एक आतंकवादी के लिए छाती पीट-पीटकर मातम मनाने वाले भी राष्ट्रद्रोही ही हैं... इनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए था, जैसा एक देशद्रोही के साथ होना चाहिए... एक आतंकवादी का अपने तुच्छ स्वार्थों के लिए अभिनन्दन करने वाले नीच, नराधम क्या सिद्ध करना चाहते हैं? जिनके लिए मानवता का कोई मोल नहीं, उनके लिए मानवता की दुहाई देने वाले पाखण्डियों को समाज के सामने बेनकाब करने वाले राष्ट्रहितैषी जन निःसंदेह प्रशंसा के पात्र हैं और नमन के योग्य हैं...
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