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मंगलवार, 20 जून 2017
तीन सूचनाएं बल्कि चार घोषणाएँ
तीन सूचनाएं बल्कि चार घोषणाएँ जानने योग्य हैं। पहली..... लंदन में दो जगह मस्जिदों से निकलते हुए नमाज़ियों पर अंग्रेज़ चालकों ने गाड़ी चढ़ा दीं। यह उसी तरह हुआ जिस तरह अभी कुछ दिन पूर्व टेम्स नदी पर in the name allah कह कर इस्लामी आतंकवादियों ने अंग्रेज़ों को मारा था। यह लोग चिल्ला रहे थे कि वह सभी मुसलमानों को मार डालेंगे।
दूसरी घटना..... अमरीका के वर्जीनिया क्षेत्र में नाबरा हुसैन नाम की लड़की अपने साथियों के साथ रोज़ा खोलने के बाद टहल रही थी। उसके गिरोह पर एक कार सवार ने भद्दी बातें कहीं। यह लोग भाग कर स्थानीय मस्जिद में छुप गये। नाबरा हुसैन पीछे रह गयी। बाद में ढूंढने पर उसकी लाश रिजटॉप के तालाब में पायी गयी। फ़ेयरफ़ैक्स काउंटी की पुलिस ने इस अपराध में इस हत्या के लिये डार्विन को गिरफ़्तार कर लिया है।
तीसरी घटना..... महामहिम राज्यपाल तथागत राय का बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि बिना गृहयुद्ध के भारत में इस्लामी समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
इन सूचनाओं को घोषणा कहने का कारण है। पहली दो घटनाओं के योद्धा अपना लक्ष्य घोषित ही कर रहे थे अतः यह सूचनाएं घोषणा का दर्जा रखती हैं। नाबरा हुसैन का वध किस लिये हुआ ? क्या यह 9-11 को इस्लामियों द्वारा ध्वस्त किये गए ट्विन टावर के ख़ाली स्थान जिसे ग्राउंड ज़ीरो कहा जाता है, पर मस्जिद स्थापित करने के भरसक प्रयासों का परिणाम है ? ज्ञातव्य है कि इसके बाद अमरीका में इस्लाम के ख़िलाफ़ के लहर चल निकली है। यह इस्लामी परम्परा के अनुसार ही है कि जहाँ-जहाँ इस्लाम ने काफ़िरों के मंदिर, चर्च, सिनेगॉग इत्यादि तोड़े हैं वहां इस्लाम की ताक़त दिखने के लिये मस्जिदें बनायीं जायें। दिल्ली में क़ुतुब मीनार के प्रांगण में स्थित क़ुव्वतुल इस्लाम मस्जिद प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस मस्जिद में शिलालेख ही स्थापित है कि इस मस्जिद का निर्माण 27 हिन्दू व जैन मंदिरों को तोड़ कर उनके अवशेषों पर किया गया है। राम-जन्मभूमि, कृष्ण-जन्मभूमि, काशी-विश्वनाथ मंदिरों का विध्वंस स्वयं इस्लामी इतिहास से प्रमाणित है।
त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय अपनी बेबाकी के लिये प्रसिद्द हैं। देशद्रोही याक़ूब मेनन के जनाज़े में सम्मिलित हज़ारों इस्लामियों के संदर्भ में उन्होंने कहा ही था कि पुलिस, प्रशासन को इन लोगों पर दृष्टि रखनी चाहिये। यह लोग संभावित आतंकवादी हैं। क़ुरआन में वर्णित आख़िर इस चिंतन को इस्लामी ही नहीं पढ़ते बल्कि अमुस्लिम भी पढते हैं।
ओ मुसलमानों तुम ग़ैर मुसलमानों से लड़ो. तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये { 9-123 }
और तुम उनको जहां पाओ क़त्ल करो { २-191 }
काफ़िरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 }
ऐ नबी ! काफ़िरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 }
अल्लाह ने काफ़िरों के रहने के लिये नर्क की आग तय कर रखी है { 9-68 }
उनसे लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न आख़िरत पर; जो उसे हराम नहीं समझते जिसे अल्लाह ने अपने नबी के द्वारा हराम ठहराया है. उनसे तब तक जंग करो जब तक कि वे ज़लील हो कर जज़िया न देने लगें { 9-29 }
मूर्ति पूजक लोग नापाक होते हैं { 9-28 }
जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिये अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है. उसका ठिकाना जहन्नुम है { 5-72 }
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और ग़लत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है { 3-110 }
चौथी सूचना बल्कि घोषणा यानी इन तीनों पर अब मेरा आंकलन यह है कि " इस्लाम की सच्चाई को लोग समझने लगे हैं और उससे निबटने के प्रयास करने लगे हैं" अब जज़िया लौटाने, नबी की हराम-हलाल की छानफटक के दिन हैं। मनुष्य जाति का सबसे अच्छा समुदाय कौन सा है इसे मनुष्य समाज स्वयं तय करना चाहता है। ईमान और आख़िरत प्रारंभ में ही मानवता की कसौटी पर कसा जाना चाहिए था। देर आयद दुरुस्त आयद।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
रविवार, 11 जून 2017
****अल्लाह के लिये****
****अल्लाह के लिये****
शनिवार यानी परसों रात लंदन में टेम्स नदी पर स्थित लंदन ब्रिज पर एक वैन में सवार आतंकियों ने पहले तो यथासंभव कुचल कर लोगों को मारा। जब वैन रेलिंग से टकरा कर रुक गयी तो सवार लोग लम्बे-लम्बे चाक़ू निकाल कर बोरो स्ट्रीट मार्किट की ओर दौड़ गए। वहां पर जो उनके सामने आया, उस पर उन्होंने चाक़ू से घातक वार किये। चाक़ू लहराते हमलावर चिल्ला रहे थे 'दिस इस फ़ॉर अल्लाह'। घटना की ज़िम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है मगर आई.एस. ने शनिवार को अपने समर्थकों को ऑनलाइन संदेश भेज कर ट्रक, चाक़ू और बंदूक़ों से हमले करने की अपील की थी।
कोई सामान्य व्यक्ति जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए रोज़ अपने बच्चे को चूम कर, अपनी पत्नी को गले लगा कर घर से निकलता है, अचानक वहशी दरिंदा कैसे बन सकता है ? एक ऑनलाइन मेसेज पढ़ते ही लोगों में एक पल में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ सकता है ? मनुष्य से राक्षस बनने की यात्रा एक क्षण में कैसे हो सकती है ? अब मानव सभ्यता को बच्चे के मानसिक विकास के लिए विकसित की गयीं विभिन्न प्रणालियों की परिपक्वता पर फिर से विचार करना ही पड़ेगा। आख़िर मानव सभ्यता ने विकास की यात्रा में ऐसे आदेशों को पढ़ने-मानने की छूट कैसे दे रखी है ? क्या मनुष्यता इसके ख़तरे समझने की क्षमता खो बैठी है ?
ओ मुसलमानों तुम गैर मुसलमानों से लड़ो. तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये { 9-123 }
और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो { २-191 }
काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 }
ऐ नबी ! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 }
यह हत्यारे जिस पुस्तक क़ुरआन को ईश्वरीय पुस्तक मानते हैं और उससे प्रभावित हैं यह उसकी पंक्तियाँ हैं। उसके अनुकरणीय माने जाने वाले लोगों ने इन हत्यारों की तरह ही शताब्दियों से ऐसे हत्याकांड किये हैं बल्कि वही इन हत्यारों के प्रेरणा स्रोत हैं। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की ने 15 लाख से अधिक आर्मेनियन ईसाइयों को इस्लाम की दृष्टि में काफ़िर होने के कारण मार डाला। 1890 में अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र काफ़िरिस्तान के काफ़िरों को जबरन मुसलमान बनाया गया और उसका नाम नूरिस्तान रख दिया गया। विश्व भर में 1400 वर्षों से की जा रहीं ऐसी अनंत घटनाओं के प्रकाश में स्पष्ट है कि इस्लाम उन सबसे, जो मुसलमान नहीं है, नफ़रत करता है और उन्हें मिटाना चाहता है। इसके बावजूद इंग्लैंड के राष्ट्र-राज्य ने लंदन में शरिया ज़ोन बनाने की अनुमति दी।
शरिया ज़ोन क्या होते हैं ? शरिया ज़ोन वह क्षेत्र ही नहीं है जहाँ सुअर का मांस नहीं बेचा जा सकता या जहाँ केवल हलाल मांस ही बेचा जा सकता है बल्कि जहाँ इस चिंतन के अनुसार जीवनयापन करना क़ानूनी और अनिवार्य है। जहाँ इस चिंतन की विषबेल को फैलने के लिये क़ानूनी संरक्षण दे दिया गया है। इस क्षेत्र में कोई मुसलमान अपनी पत्नी को पीटता है तो पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती चूँकि पत्नी को पीटने के आदेश क़ुरआन में हैं। वहां इस्लामी अगर किसी काफ़िर लड़की को घेर कर उसके साथ तहर्रूश { इस्लामियों द्वारा काफ़िर लड़कियों पर सामूहिक और सार्वजानिक बलात्कार, इसका स्वाद कुछ समय पूर्व जर्मनी ने भी चखा था } करेंगे तो यह उनका इस्लामी अधिकार होगा।
ब्रिटेन की कांग्रेस जैसे ही चिंतन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता डेविड कैमरून ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि उन लोगों ने अपने निश्चित वोट बैंक बनाने के लिये पाकिस्तान, बांग्लादेश से इस्लामी शांतिपुरूष इम्पोर्ट किये थे। जो बेल बोई थी अब उसके फूल आने लगे।
यहाँ स्वयं से भी एक सवाल पूछना है। अंग्रेज़ों को कोसने से क्या होगा। यही तो 1947 में भारत के विभाजन के बाद हुआ था। भारत इस्लाम के कारण बांटा गया था। इस्लाम प्रजातान्त्रिक भारत में नहीं रहना चाहता था चूँकि अब हर व्यक्ति के वोट की बराबर क़ीमत होती। इससे उसके वर्चस्व की सम्भावनायें कम हो जानी थीं। अब उसके बाक़ी काफ़िरों को रौंदने, उनकी औरतों को लौंडी बनाने, उन्हें ग़ुलाम बनाने, जज़िया वसूलने का ऐतिहासिक इस्लामी अधिकार समाप्त हो रहा था। इस्लामियों ने बड़े पैमाने पर दंगे किये। कांग्रेसी नेतृत्व ने इस्लामी गुंडागर्दी का मुक़ाबला करने और हिन्दू पौरुष को संरक्षण देने की जगह देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। इस्लाम के जबड़ों में देश का बड़ा हिस्सा फेंक दिया गया मगर अपने लिये सिक्काबंद वोटबैंक बनाने की नियत से गाँधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने विभाजन के समर्थकों को भारत में ही रोक लिया।
हमने भी कश्मीर में इसका परिणाम देख लिया है। यही कश्मीर में हुआ है। हज़ारों हिन्दू वहां मारे गए। हज़ारों के साथ बलात्कार हुआ मगर केवल एक पर भी मुक़दमा आज तक नहीं चला। बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में भी विषबेल पर फूल आने लगे हैं। इस विषबेल को जड़ से उखाड़ने के लिये सन्नद्ध होने के अतिरिक्त सभ्य विश्व के पास कोई उपाय नहीं है और इसे तुरन्तता से उखाड़ा जाना चाहिए। यह वैचारिक विषबेल है। इसकी जड़, पत्ती, तना, डाली, छाल यहाँ तक सूखे पत्ते भी नष्ट दिए जाने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
सऊदी अरब से जवान लड़कियां भारी संख्या में फ़रार
इस्लामी क़ानून के अनुसार निकाह से पहले लड़की की ज़िम्मेदारी उसके पिता, पिता न हो तो भाई और निकाह के बाद शौहर की होती है। किसी कारण से तलाक़ हो जाये तो यह ज़िम्मेदारी वापस पिता या उसकी अनुपस्थिति में भाई की हो जाती है। ज़िम्मेदारी से तात्पर्य अभिभावक होना होता है अर्थात उस महिला को अपने जीवन के सामन्य कार्यों के लिए इन अभिभावकों की अनुमति लेनी होती है। इस्लामी क़ानूनविदों की समझ में औरत की ज़िम्मेदारी हर स्थिति में पुरुष को उठानी चाहिये। एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में भी यह प्रश्न आ सकता है कि इस्लामी क़ानूनविदों की दृष्टि में कोई मुसलमान औरत अपनी ज़िम्मेदारी उठाने के लायक़ क्यों नहीं है ? क्या औरत बुद्धि नहीं रखती ? आइये इस दक़ियानूसी चिंतन के परिणामों का अवलोकन किया जाये।
उर्दू के प्रमुख अख़बारों में से एक नई दुनिया के 16 अप्रैल के अंक का समाचार है कि सऊदी अरब से जवान लड़कियां भारी संख्या में फ़रार हो रही हैं। बताया जाता है कि यह लड़कियां विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने, और वहां पर नौकरी करने के लक्ष्य से अपने देश से भाग रही हैं। जो लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाती हैं वो वापस नहीं आतीं। ज्ञातव्य है कि सऊदी अरब में कोई महिला पुरुष के बिना घर से नहीं निकल सकती। उन्हें कार चलाने और पर्दा किये बिना घर से निकलने का अधिकार नहीं है। विदेश गई सऊदी महिलाएं वहाँ अपने लिये वर तलाश कर रही हैं ताकि वह वहाँ पर बस सकें।
जानना उपयुक्त होगा कि सऊदी अरब की एक तलाक़शुदा औरत ने बताया कि मैं 45 वर्ष की हूँ मेरा अभिभावक 17 वर्ष का मेरा भाई है। मैं एक अस्पताल में काम कर रही हूँ। मेरा भाई मुझे अपनी निगरानी में अस्पताल लाता है और वापस ले जाता है। मुझे जो वेतन मिलता है वो छीन लेता है और उससे अय्याशी करता है, उससे नशीले मादक पदार्थों का सेवन करता है। सऊदी अरब के एक विश्वविद्यालय के एक उपकुलपति ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि प्रतिवर्ष डेढ़ लाख सऊदी लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाती हैं और वापस नहीं आतीं।
1400 वर्ष पहले मुकम्मल दीन भेजने का दावा करने वाले अल्लाह को मानवता और इस्लामियों का भविष्य नज़र नहीं आया ? इसी तरह से इस्लामी देशों में औरतों की कमी होती रही तो सरकार की उम्मत { प्रजा } क्या करेगी ? अंदाज़ा लगाइये ? ? ?
तुफ़ैल चतुर्वेदी
शनिवार, 10 जून 2017
अगर आपका किसी उर्दू वाले से पाला पड़ा है तो आपने पाया होगा कि उर्दू वाले का उच्चारण कुछ अजीब सा होता है। वो आधी ध्वनियों को पूरा बोलता है। क्लब को किलब, प्रचार को परचार, सरस्वती को सरसुती.......ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं। कभी इस्लाम के वामपंथी मुखौटे जावेद अख़्तर को, घनघोर मुल्ला ओवैसी भाइयों को टी वी पर बोलते सुनिये। आपको उच्चारण का यह बहुत भौडा अंतर तुरन्त समझ आ जायेगा। इसका कारण उर्दू वालों से पूछिये तो जवाब मिलता है कि उर्दू में आधे हर्फ़ नहीं लिखे जाते हैं अतः पढ़े-बोले भी नहीं जाते हैं। यहाँ एक तार्किक बात सूझती है कि हर्फ़ को हरफ़ तो नहीं बोला जाता। उर्दू के दो अक्षर स्वाद, ज़्वाद सवाद या सुवाद और ज़वाद नहीं बोले जाते। यानी आधी ध्वनि लिख न पाने का बहाना झूठ है तो फिर क्या कारण है कि उर्दू वाले दूसरी भाषाओँ के उच्चारण बिगड़ कर बोलते हैं ?
आपने कभी कुत्ता पाला है ? न पाला हो तो किसी पालने वाले से पूछियेगा। जब भी कुत्ते को घुमाने ले जाया जाता है तो कुत्ता सारे रास्ते इधर-उधर सूंघता हुआ और सूंघे हुए स्थानों पर पेशाब करता हुआ चलता है। स्वाभाविक है कि यह सूझे यदि कुत्ते को पेशाब आ रहा है तो एक बार में क्यों फ़ारिग़ नहीं होता, कहीं उसे पथरी तो हो नहीं गयी है ? फिर हर कुत्ते को पथरी तो नहीं हो सकती फिर उसका पल-पल धार मारने का क्या मतलब है ? मित्रो! कुत्ता वस्तुतः पेशाब करके अपना इलाक़ा चिन्हित करता है। यह उसका क्षेत्र पर अधिकार जताने का ढंग है। बताने का माध्यम है कि यह क्षेत्र मेरी सुरक्षा में है और इससे दूर रहो अन्यथा लड़ाई हो जाएगी। उर्दू वालों का अन्य भाषाओँ के शब्दों को उनकी मूल ध्वनियों की जगह बिगाड़ कर बोलना कहीं उन भाषाओँ, उनके बोलने वालों में अपना इलाक़ा चिन्हित करना तो नहीं है ?
ईसाई विश्व का एक समय सबसे प्रभावी नगर कांस्टेंटिनोपल था। 1453 में इस्लाम ने इस नगर को जीता और इसका नाम इस्ताम्बूल कर दिया। स्वाभाविक ही मन में प्रश्न उठेगा कि कांस्टेंटिनोपल में क्या तकलीफ़ थी जो उसे इस्ताम्बूल बनाया गया ? बंधुओ, यही इस्लाम है। सारे संसार को, संसार भर के हर विचार को, संसार भर की हर सभ्यता को, संसार भर की हर आस्था को.......मार कर, तोड़ कर, फाड़ कर, छीन कर, जीत कर, नोच कर, खसोट कर.......येन-केन-प्रकारेण इस्लामी बनाना ही इस्लाम का लक्ष्य है। रामजन्भूमि, काशी विश्वनाथ के मंदिरों पर पर इसी कारण मस्जिद बनाई जाती है। कृष्ण जन्मभूमि का मंदिर तोड़ कर वहां पर इसी कारण ईदगाह बनाई जाती है। पटना को जहानाबाद इसी कारण किया जाता है। अलीगढ, शाहजहांपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर और ऐसे ही सैकड़ों नगरों के नाम.......वाराणसी, मथुरा, दिल्ली, अजमेर चंदौसी, उज्जैन जैसे सैकड़ों नगरों में छीन कर भ्रष्ट किये गए मंदिर इन इस्लामी करतूतों के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
इस्लाम अपने अतिरिक्त हर विचार, जीवन शैली से इतनी घृणा करता है कि उसे नष्ट करता आ रहा है, नष्ट करना चाहता है। इसका इलाज ही यह है कि समय के पहिये को उल्टा घुमाया जाये। इन सारे चिन्हों को बीती बात कह कर नहीं छोड़ा जा सकता चूँकि इस्लामी लोग अभी भी उसी दिशा में काम कर रहे हैं। बामियान के बुद्ध, आई एस आई एस द्वारा सीरिया के प्राचीन स्मारकों को तोडा जाना आज भी चल रहा है। इस्लामियों के लिये उनका हत्यारा चिंतन अभी भी त्यागने योग्य नहीं हुआ है, अभी भी कालबाह्य नहीं हुआ है।
अतः ऐसी हर वस्तु, मंदिर, नगर हमें वापस चाहिये। राष्ट्रबन्धुओ! इसका दबाव बनाना प्रारम्भ कीजिये। सोशल मीडिया पर, निजी बातचीत में, समाचारपत्रों में जहाँ बने जैसे बने इस बात को उठाते रहिये। यह दबाव लगातार बना रहना चाहिए। पेट तो रात-दिन सड़कों पर दुरदुराया जाते हुए पशु भी भर लेते हैं। मानव जीवन गौरव के साथ, सम्मान के साथ जीने का नाम है। हमारा सम्मान छीना गया था। समय आ रहा है, सम्मान वापस लेने की तैयारी कीजिये।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
****अल्लाह के लिये****
****अल्लाह के लिये****
शनिवार यानी परसों रात लंदन में टेम्स नदी पर स्थित लंदन ब्रिज पर एक वैन में सवार आतंकियों ने पहले तो यथासंभव कुचल कर लोगों को मारा। जब वैन रेलिंग से टकरा कर रुक गयी तो सवार लोग लम्बे-लम्बे चाक़ू निकाल कर बोरो स्ट्रीट मार्किट की ओर दौड़ गए। वहां पर जो उनके सामने आया, उस पर उन्होंने चाक़ू से घातक वार किये। चाक़ू लहराते हमलावर चिल्ला रहे थे 'दिस इस फ़ॉर अल्लाह'। घटना की ज़िम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है मगर आई.एस. ने शनिवार को अपने समर्थकों को ऑनलाइन संदेश भेज कर ट्रक, चाक़ू और बंदूक़ों से हमले करने की अपील की थी। उसने यह वारदात रमज़ान में ख़ास तौर पर करने के लिये कहा था।
आइये हमलावर की मनःस्थिति पर विचार करें। आख़िर कोई सामान्य व्यक्ति जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए रोज़ अपने बच्चे को चूम कर, अपनी पत्नी को गले लगा कर घर से निकलता है, अचानक वहशी दरिंदा कैसे बन सकता है ? एक ऑनलाइन मेसेज पढ़ते ही लोगों में एक पल में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ सकता है ? मनुष्य से राक्षस बनने की यात्रा एक क्षण में कैसे हो सकती है ? अब मानव सभ्यता को बच्चे के मानसिक विकास के लिए विकसित की गयीं विभिन्न प्रणालियों की परिपक्वता पर फिर से विचार करना ही पड़ेगा। आख़िर मानव सभ्यता ने विकास की यात्रा में ऐसे आदेशों को पढ़ने-मानने की छूट कैसे दे रखी है ? क्या मनुष्यता इसके ख़तरे समझने की क्षमता खो बैठी है ?
ओ मुसलमानों तुम गैर मुसलमानों से लड़ो. तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये { 9-123 }
और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो { २-191 }
काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 }
ऐ नबी ! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 }
अल्लाह ने काफिरों के रहने के लिये नर्क की आग तय कर रखी है { 9-68 }
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और गलत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है { 3-110 }
हम जानते हैं कि यह हत्यारे जिस पुस्तक क़ुरआन को ईश्वरीय पुस्तक मानते हैं और उससे प्रभावित हैं यह उसी की पंक्तियाँ हैं। उसके अनुकरणीय माने जाने वाले लोगों ने इन हत्यारों की तरह ही शताब्दियों से ऐसे हत्याकांड किये हैं। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की ने 15 लाख से अधिक आर्मेनियन ईसाइयों को इस्लाम की दृष्टि में काफ़िर होने के कारण मार डाला। 1890 में अफ़ग़ानिस्तान के एक क्षेत्र काफ़िरिस्तान के काफ़िरों को जबरन मुसलमान बनाया गया और उसका नाम नूरिस्तान रख दिया गया। विश्व भर में 1400 वर्षों से घटती आ रहीं ऐसी अनंत घटनाओं के प्रकाश में तय है कि इस्लाम उन सबसे, जो मुसलमान नहीं है, नफ़रत करता है और उन्हें मिटाना चाहता है। इसके बावजूद इंग्लैंड के राष्ट्र-राज्य ने लंदन में शरिया ज़ोन बनाने की अनुमति दी। उसने सादिक़ ख़ान को लंदन का मेयर मेयर बनाया।
आइये जानें कि शरिया ज़ोन का अर्थ क्या है ? शरिया ज़ोन वह क्षेत्र ही नहीं है जहाँ सुअर का मांस नहीं बेचा जा सकता या जहाँ केवल हलाल मांस ही बेचा जा सकता है बल्कि जहाँ इस चिंतन के अनुसार जीवनयापन करना क़ानूनी और अनिवार्य है। जहाँ इस चिंतन की विषबेल को फैलने के लिये क़ानूनी संरक्षण दे दिया गया है। इस क्षेत्र में कोई मुसलमान अपनी पत्नी को पीटता है तो पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती चूँकि पत्नी को पीटने के आदेश क़ुरआन में हैं। वहां इस्लामी अगर किसी काफ़िर लड़की को घेर कर उसके साथ तहर्रूश { इस्लामियों द्वारा काफ़िर लड़कियों पर सामूहिक और सार्वजानिक बलात्कार, इसका स्वाद कुछ समय पूर्व जर्मनी ने भी चखा था } करेंगे तो यह उनका इस्लामी अधिकार होगा। ब्रिटेन की कांग्रेस जैसे ही चिंतन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता डेविड कैमरून ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि उन लोगों ने अपने निश्चित वोट बैंक बनाने के लिये पाकिस्तान, बांग्लादेश से इस्लामी शांतिपुरूष इम्पोर्ट किये थे। जो बेल बोई थी अब उसके फूल आने लगे।
यहाँ स्वयं से भी एक सवाल पूछना है। अंग्रेज़ों को कोसने से क्या होगा। यही तो 1947 में भारत के विभाजन के बाद हुआ था। विभाजन इस्लाम के कारण हुआ था। इस्लाम हिन्दू बहुल प्रजातान्त्रिक भारत में नहीं रहना चाहता था चूँकि अब हर व्यक्ति के वोट की बराबर क़ीमत होती। इससे उसके वर्चस्व की सम्भावनायें कम हो जानी थीं। अब उसके बाक़ी काफ़िरों को ज़लील करने, रौंदने, उनकी औरतों को लौंडी बनाने, उन्हें ग़ुलाम बनाने, जज़िया वसूलने का ऐतिहासिक इस्लामी अधिकार समाप्त हो रहा था। इस्लामियों ने बड़े पैमाने पर दंगे किये। कांग्रेसी नेतृत्व ने इस्लामी गुंडागर्दी का मुक़ाबला करने और हिन्दू पौरुष को संरक्षण देने की जगह देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। इस्लाम के जबड़ों में देश का बड़ा हिस्सा फेंक दिया गया मगर अपने लिये सिक्काबंद वोटबैंक बनाने की नियत से गाँधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने विभाजन के समर्थकों को भारत में ही रोक लिया।
हमने भी कश्मीर में इसका परिणाम देख लिया है। बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में विषबेल के फूल आने लगे हैं। इस विषबेल को जड़ से उखाड़ने के लिये सन्नद्ध होने के अतिरिक्त सभ्य विश्व के पास कोई उपाय नहीं है और इसे तुरन्तता से उखाड़ा जाना चाहिए। यह वैचारिक विषबेल है। इसकी जड़, पत्ती, तना, डाली, छाल यहाँ तक सूखे पत्ते भी नष्ट दिए जाने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
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