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रविवार, 11 जून 2017

****अल्लाह के लिये****

****अल्लाह के लिये**** शनिवार यानी परसों रात लंदन में टेम्स नदी पर स्थित लंदन ब्रिज पर एक वैन में सवार आतंकियों ने पहले तो यथासंभव कुचल कर लोगों को मारा। जब वैन रेलिंग से टकरा कर रुक गयी तो सवार लोग लम्बे-लम्बे चाक़ू निकाल कर बोरो स्ट्रीट मार्किट की ओर दौड़ गए। वहां पर जो उनके सामने आया, उस पर उन्होंने चाक़ू से घातक वार किये। चाक़ू लहराते हमलावर चिल्ला रहे थे 'दिस इस फ़ॉर अल्लाह'। घटना की ज़िम्मेदारी अभी तक किसी ने नहीं ली है मगर आई.एस. ने शनिवार को अपने समर्थकों को ऑनलाइन संदेश भेज कर ट्रक, चाक़ू और बंदूक़ों से हमले करने की अपील की थी। कोई सामान्य व्यक्ति जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए रोज़ अपने बच्चे को चूम कर, अपनी पत्नी को गले लगा कर घर से निकलता है, अचानक वहशी दरिंदा कैसे बन सकता है ? एक ऑनलाइन मेसेज पढ़ते ही लोगों में एक पल में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ सकता है ? मनुष्य से राक्षस बनने की यात्रा एक क्षण में कैसे हो सकती है ? अब मानव सभ्यता को बच्चे के मानसिक विकास के लिए विकसित की गयीं विभिन्न प्रणालियों की परिपक्वता पर फिर से विचार करना ही पड़ेगा। आख़िर मानव सभ्यता ने विकास की यात्रा में ऐसे आदेशों को पढ़ने-मानने की छूट कैसे दे रखी है ? क्या मनुष्यता इसके ख़तरे समझने की क्षमता खो बैठी है ? ओ मुसलमानों तुम गैर मुसलमानों से लड़ो. तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये { 9-123 } और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो { २-191 } काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 } ऐ नबी ! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 } यह हत्यारे जिस पुस्तक क़ुरआन को ईश्वरीय पुस्तक मानते हैं और उससे प्रभावित हैं यह उसकी पंक्तियाँ हैं। उसके अनुकरणीय माने जाने वाले लोगों ने इन हत्यारों की तरह ही शताब्दियों से ऐसे हत्याकांड किये हैं बल्कि वही इन हत्यारों के प्रेरणा स्रोत हैं। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की ने 15 लाख से अधिक आर्मेनियन ईसाइयों को इस्लाम की दृष्टि में काफ़िर होने के कारण मार डाला। 1890 में अफ़ग़ानिस्तान के क्षेत्र काफ़िरिस्तान के काफ़िरों को जबरन मुसलमान बनाया गया और उसका नाम नूरिस्तान रख दिया गया। विश्व भर में 1400 वर्षों से की जा रहीं ऐसी अनंत घटनाओं के प्रकाश में स्पष्ट है कि इस्लाम उन सबसे, जो मुसलमान नहीं है, नफ़रत करता है और उन्हें मिटाना चाहता है। इसके बावजूद इंग्लैंड के राष्ट्र-राज्य ने लंदन में शरिया ज़ोन बनाने की अनुमति दी। शरिया ज़ोन क्या होते हैं ? शरिया ज़ोन वह क्षेत्र ही नहीं है जहाँ सुअर का मांस नहीं बेचा जा सकता या जहाँ केवल हलाल मांस ही बेचा जा सकता है बल्कि जहाँ इस चिंतन के अनुसार जीवनयापन करना क़ानूनी और अनिवार्य है। जहाँ इस चिंतन की विषबेल को फैलने के लिये क़ानूनी संरक्षण दे दिया गया है। इस क्षेत्र में कोई मुसलमान अपनी पत्नी को पीटता है तो पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती चूँकि पत्नी को पीटने के आदेश क़ुरआन में हैं। वहां इस्लामी अगर किसी काफ़िर लड़की को घेर कर उसके साथ तहर्रूश { इस्लामियों द्वारा काफ़िर लड़कियों पर सामूहिक और सार्वजानिक बलात्कार, इसका स्वाद कुछ समय पूर्व जर्मनी ने भी चखा था } करेंगे तो यह उनका इस्लामी अधिकार होगा। ब्रिटेन की कांग्रेस जैसे ही चिंतन की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता डेविड कैमरून ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि उन लोगों ने अपने निश्चित वोट बैंक बनाने के लिये पाकिस्तान, बांग्लादेश से इस्लामी शांतिपुरूष इम्पोर्ट किये थे। जो बेल बोई थी अब उसके फूल आने लगे। यहाँ स्वयं से भी एक सवाल पूछना है। अंग्रेज़ों को कोसने से क्या होगा। यही तो 1947 में भारत के विभाजन के बाद हुआ था। भारत इस्लाम के कारण बांटा गया था। इस्लाम प्रजातान्त्रिक भारत में नहीं रहना चाहता था चूँकि अब हर व्यक्ति के वोट की बराबर क़ीमत होती। इससे उसके वर्चस्व की सम्भावनायें कम हो जानी थीं। अब उसके बाक़ी काफ़िरों को रौंदने, उनकी औरतों को लौंडी बनाने, उन्हें ग़ुलाम बनाने, जज़िया वसूलने का ऐतिहासिक इस्लामी अधिकार समाप्त हो रहा था। इस्लामियों ने बड़े पैमाने पर दंगे किये। कांग्रेसी नेतृत्व ने इस्लामी गुंडागर्दी का मुक़ाबला करने और हिन्दू पौरुष को संरक्षण देने की जगह देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। इस्लाम के जबड़ों में देश का बड़ा हिस्सा फेंक दिया गया मगर अपने लिये सिक्काबंद वोटबैंक बनाने की नियत से गाँधी और नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने विभाजन के समर्थकों को भारत में ही रोक लिया। हमने भी कश्मीर में इसका परिणाम देख लिया है। यही कश्मीर में हुआ है। हज़ारों हिन्दू वहां मारे गए। हज़ारों के साथ बलात्कार हुआ मगर केवल एक पर भी मुक़दमा आज तक नहीं चला। बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों में भी विषबेल पर फूल आने लगे हैं। इस विषबेल को जड़ से उखाड़ने के लिये सन्नद्ध होने के अतिरिक्त सभ्य विश्व के पास कोई उपाय नहीं है और इसे तुरन्तता से उखाड़ा जाना चाहिए। यह वैचारिक विषबेल है। इसकी जड़, पत्ती, तना, डाली, छाल यहाँ तक सूखे पत्ते भी नष्ट दिए जाने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है। तुफ़ैल चतुर्वेदी

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