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बुधवार, 27 सितंबर 2017

सँसार की सबसे बड़ी ख़बर

हो सकता है आप इस छोटे से लेख पर सबसे बड़ी ख़बर का शीर्षक पढ़ कर हँसने लगें। सँसार की सबसे बड़ी ख़बर, इस्लामी उम्मा के आधे नाक़िस उल अक़्ल हिस्से, न न मैं नहीं कह रहा ये पोपट सरकार बल्कि चौपट सरकार और उनकी किताब का फ़रमान है, को सऊदी अरब में गाड़ी चलने की अनुमति मिल गयी है। दुनिया के लिये आख़िरी मुकम्मल दीन के दावा करने वालों की जमात के संरक्षक, वित्त-पोषक, प्रेरक { यहाँ भड़काऊ अर्थ लें } सऊदी अरब के शाह ने औरतों को गाड़ी चलाने की अनुमति दे दी है। सऊदी अरब में यह ख़बर सुन कर औरतें गाड़ी ले कर रात में ही सड़कों पर निकल आईं। 'आई एम माय ओन गार्जियन' जैसे हैश टैग सऊदी सोशल मिडिया पर छा गये। गाड़ी चलाना भर इन बदनसीबों को अपना गार्जियन बनने की ओर बढ़ता हुआ क़दम लग रहा है ? इससे उस घोर-घुटन, संत्रास, पीड़ादायक जीवन का अनुमान लगाइये जो क़ुरआन और हदीसों के पालन के नियम ने मुसलमानों के आधे हिस्से को सौंपा है। आज भी सऊदी अरब में लड़की अपने अभिभावक की अनुमति के बिना शादी नहीं कर सकती। काले रंग के पूरे शरीर को ढकने वाले अबाया नाम के वस्त्र को ढंके बिना किसी सार्वजनिक स्थान पर नहीं जा सकती। पुरुष अभिभावक के बिना स्त्री डॉक्टर के पास भी नहीं जा सकती। पुरुष अभिभावक की लिखित अनुमति के बिना पासपोर्ट नहीं बनवा सकती। पुरुष अभिभावक की अनुमति के बिना पहचान-पत्र नहीं बनवा सकती। किस रेस्त्रां के परिवारी सैक्शन में ही खाना खा सकती है। पुरुष गारंटर के बिना बिज़नेस नहीं कर सकती। पैतृक सम्पत्ति में लड़की को भाई से आधे भाग का ही अधिकार है। तलाक़ हो जाये तो लड़के के 7 साल और लड़की के 9 साल के होने से पहले उसे अपनी संतान को अपने पास रखने का अधिकार नहीं है। कोर्ट में दो औरतों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती है { यह क़ुरआन का आदेश है } गाड़ी चलने की अनुमति देना कितना बड़ा साहसी क़दम है। स्त्री अभी तक ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकती थी। सऊदी अरब के शाह को अपने सीने पर पत्थर बल्कि पहाड़ रख कर यह निर्णय लेना पड़ा होगा। सँसार भर में मुल्ला जमात औरतों के गाड़ी चलाने को सामाजिक मान्यताओं का उल्लंघन मानती है। इस वाक्य का ख़ुलासा करें तो यह मुल्ला सोच बरामद होती है कि औरतें अगर मर्द की पहरेदारी के बिना गाड़ी चलायेंगी वो घर का सौदा-सुल्फ़........सब्ज़ी-गोश्त लेने, बच्चे को डॉक्टर के पास या ऐसे ही किसी आवश्यक काम से नहीं जाएँगी वो बदचलनी करने जाएँगी। यह वाक़ई तकलीफ़ देने वाली बात है। मुल्ला जिन मदरसों में पढ़े हुए हैं वहां का वातावरण स्त्री-विरोधी और पुरुष-प्रेमी होता है। स्पष्ट है यह उनके अधिकारों का हनन है और अपने अधिकार छिनवाना कौन चाहेगा ? यह जानना ठीक होगा कि सँसार में ग़ुलामी और लौंडियाँ रखने को ग़ैरक़ानूनी क़रार देने वाला आख़िरी देश कौन सा है ? साहब जी, सऊदी अरब जी हाँ सऊदी अरब मानवता का अंतिम कैंसर था। सँसार भर के दबाव के बाद इस देश के शासकों ने ग़ुलामों और लौंडियाँ रखने को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया था। यह निर्णय आसान नहीं था कि यह मुहम्मद की सुन्नत थी और इस्लामी दृष्टि में मुहम्मद का किया-धरा अपने जीवन में उतारना सवाब का काम है। उसका उल्लंघन कौन करे ? सऊदी अरब के शाह ने यही कर दिखाया है। साहब जी मैं तो यह ख़बर पढ़ते ही फूट-फूट कर रोने लगा। इतना भावुक हो गया हूँ........पता नहीं आज यह आँसू रुकेंगे कि नहीं। सऊदी अरब के बादशाह आपकी जय हो। इस चिंतन की जड़ ही काट डालिये, पत्ते नोचने से कुछ नहीं होगा। वरना सभ्य समाज आपकी काट डालेगा तुफ़ैल चतुर्वेदी

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