दोस्तो सार्वजनिक जीवन के स्थापित लोग बेचैन कर सकने वाले विषयों पर सामान्यतः चुप रहते हैं या बहुत नपा-तुला बोलते हैं। उनकी कोशिश ये रहती है कि ऐसा कुछ भी जो विवादास्पद बन सकता है न कहा जाये। इसकी तह में ये भय रहता है कि स्थिर और स्थापित जीवन विचलित न हो जाये मगर साहिबो एक मर्द निकल आया और याक़ूब मेनन जैसे दुर्दांत हत्यारे और उसके हिमायतियों के बारे में सच कह दिया। जी हाँ मैं त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय की बात कर रहा हूँ।
याक़ूब मेनन जैसे देशद्रोही को ही नहीं किसी भी भारतीय को जीवन का अधिकार संविधान से मिला मौलिक अधिकार है। इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी भी स्थिति में किसी भारतीय नागरिक के प्राण नहीं लिये जा सकते। इसका अर्थ यह है कि किसी भारतीय नागरिक के प्राण लेने का अधिकार केवल राज्य को है और वो भी नागरिक के प्राण लेने के लिए अभियोग ही चला सकता है और मृत्युदंड का निर्णय उससे निरपेक्ष, तटस्थ न्यायपालिका करेगी। न्यायपालिका भी प्राणदंड स्वयं अपनी व्यवस्था के अनुसार दुर्लभतम में भी दुर्लभ मामलों में देती है।
सेशन, हाई कोर्ट में अपील, सुप्रीम कोर्ट में अपील, राष्ट्रपति से क्षमादान की याचिका और उसे निरस्त कर देने के बाद फिर से पुनरीक्षण याचिका यानी हर तरह से सिक्काबंद, ठोस व्यवस्था कि कोई निर्दोष न मर जाये। ये सावधानी इस हद तक है कि भारतीय भूमि पर किसी विदेशी आतंकी को भी बिना अभियोग चलाये मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता । अजमल कसाब पर भी इस धरती के कानूनों के हिसाब से अभियोग चला कर नियमानुसार मृत्युदंड दिया गया।
याक़ूब मेनन अपने पापी ख़ानदान सहित मुंबई के सीरियल बम धमाकों जिनमें 270 लोग मारे गए और हज़ारों लोग बुरी तरह घायल हुए, में सम्मिलित था। याक़ूब मेनन का अपराध हताहतों की संख्या की दृष्टि से ही बहुत बड़ा नहीं है बल्कि देशद्रोह भी है। उसने, उसके बाप, माँ, भाई, भाभी अन्य परिवारीय लोगों ने अपनी तरफ से यथासंभव भारत को चोट पहुँचाने का भरसक प्रयास किया। इसके परिवार में कइयों को सज़ाएं हुईं और इसे फांसी पर लटकाया गया। ऐसे दुष्ट प्राणी को मिटटी में दबाने के समय लाखों लोगों का उपस्थित होना क्या कह रहा है ?
आख़िर एक देशद्रोही के जनाज़े में सम्मिलित होने वाले लोग कुछ सोच कर तो अपने काम पर न जा कर क़ब्रिस्तान पहुंचे होंगे ? उनके मानस में कोई तो अंतर्धारा बह रही होगी ? उस अंतर्धारा की पहचान और वो देश, राष्ट्र के लिए हानिकर है तो उसकी रोकथाम राजनेता नहीं करेंगे तो और कौन करेगा ?
आख़िर लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, आज़म खान, अबू आज़मी, कांग्रेस के सचिन पायलेट, शकील अहमद, मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अकबरुद्दीन ओवैसी-असदुद्दीन ओवैसी, साम्यवादी पार्टी के प्रकाश करात, वृंदा करात, आप के अरविन्द केजरीवाल, आप से निष्काशित प्रशांत भूषण, ममता बनर्जी जैसे मुस्लिम वोटों के लिये जीभ लपलपाते राजनेता उसके पक्ष में अकारण तो बक्चो…नहीं करने लगे।
फांसी लगने के बाद याक़ूब मेनन का शरीर पूरा उसके घर वालों को सौंप दिया गया। जिसके दफ़नाते समय लाखों मुसलमान एकत्र हुए। यहाँ ये ध्यान में आना आवश्यक है कि इन हत्यारों के किये विस्फोटों के बाद सैकड़ों लोगों के छिन्न-भिन्न शव मिले। जिनके टुकड़े इकट्ठे कर के अंतिम संस्कार किया गया। सैकड़ों घायल हुए लोग आज भी विकलांग का जीवन जी रहे हैं। देवबंदी मुल्लाओं ने तो कहा था आतंकवादियों की नमाज़े-जनाज़ा जायज़ नहीं है।
वो सारे कहाँ हैं ?बोलते क्यों नहीं ? मुंह में दही जमा हुआ है या ज़बान बिल्ली ले गयी ? आज ये सब तो ऐसे चुप बैठे हैं जैसे गोद में सांप बैठा हो और हिलना मना हो।
बंधुओ, तो जो बोल रहे हैं उनके पक्ष आवाज़ नहीं उठानी चाहिये। क्या ये समय त्रिपुरा के राज्यपाल महामहिम तथागत राय का आभार प्रकट करने, उनकी स्तुति गान का नहीं है ? और कुछ नहीं तो महामहिम तथागत राय के चरणों में हम प्रणाम तो कर ही सकते हैं। महामहिम प्रणाम स्वीकारिये
तुफ़ैल चतुर्वेदी
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