:::::::::::::::: My name is khan and I am....... not or a terrorist ?
आज के दैनिक जागरण के अंतिम पृष्ठ पर हैडिंग है "ब्रिटिश पब में इस्लाम लिखा जैकेट उतरवाया" विस्तृत रिपोर्टिंग यह है "संसार में मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। ताज़ा मामले में पब में एक स्कूल टीचर से इस्लाम लिखे जैकेट को उतारने को कहा गया। कुछ दिनों पहले न्यूज़ीलैंड में एक महिला को हिजाब के बिना नौकरी के लिये आवेदन करने को कहा गया। अंतिम पंक्तियाँ इस तरह हैं "पब के एक कर्मचारी ने उनसे { नूरुल से } कहा कि वहां मौजूद लोगों को इससे असुविधा हो रही है, लिहाज़ा इसे उतार लें या फिर यहाँ से जायें। नूरुल ने बताया कि इससे वो भौंचक्के रह गये। उन्होंने कहा, सरनेम के चलते मेरे साथ भेदभाव किया जा रहा था। इस घटना से मैं बहुत परेशान था। मेरे मुस्लिम होने से लोगों का इस तरह चिंतित होना मेरे लिये ख़ौफ़नाक है"। ध्यान रखिये कि यह ब्रिटेन में हुआ है जहाँ के लोगों ने इसी समस्या के कारण स्वयं को योरोपीय यूनियन से अलग कर लिया है।
मित्रो, ये कोई नई बात नहीं है। आपको कुछ माह पहले, ग ग ग गलती बोलने वाले हकले अभिनेता के तथाकथित बयान का उल्लेख ध्यान होगा। जिसमें इसके अनुसार भारत में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। उस ने इस विषय को पैसे कमाने का मौक़ा ताड़ कर My name is khan and I am not terrorist बना मारी। फिर भी मेरे लिये किसी के साथ भी ऐसा व्यवहार बहुत पीड़ादायक है। किसी को भी ख़ान, सिद्दीक़ी, अली, मुहम्मद, उस्मान, मुस्तफ़ा, अबू बकर, उमर फ़ारूक़, उस्मान....... होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़े यह सभ्य समाज के लिये बहुत बुरी बात है। हम निष्पक्ष-तटस्थ नियमों-क़ानून द्वारा संचालित होते हैं। सभ्य विश्व किसी बादशाह, अमीर या नवाब की मनमानी सनकों से नहीं चलता।
एक और समाचार; 6 जुलाई के हिंदुस्तान एक्सप्रेस के अनुसार मुस्लिमों के सबसे पवित्र महीने रमजान में इस्लामिक आतंकियों ने जम कर हमले किये। इस महीने में कम से कम 1671 जानें गयीं। एक महीने के अंदर दुनिया के 31 देशों में आतंकवादियों ने 308 हमले किये। इसके लिये ज़िम्मेदार मुस्लिम ब्रदरहुड, सलफ़ी, ज़िम्मा इस्लामिया, बोको हराम, जमात-उद-दावा, तालिबान, ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामी मूवमेंट, इख़वानुल मुस्लिमीन, लश्करे-तैय्यबा, जागृत मुस्लिम जनमत-बांग्ला देश, इस्लामी स्टेट, जमातुल-मुजाहिदीन, अल मुहाजिरो, दौला इस्लामिया जैसे प्रकट और गुप्त सैकड़ों संगठनों के नाम ध्यान कीजिये। अब एक सवाल ख़ान, सिद्दीक़ी, अली, मुहम्मद, उस्मान, मुस्तफ़ा, अबू बकर, उमर फ़ारूक़, उस्मान जैसे नामों वाले देशवासियो !विश्ववासियो ! से करना चाहूंगा।
क्या कभी आपको सूझा है कि इसी रमज़ान के केवल एक महीने में मरने वाले 1671 लोगों के लिये कोई एक दुखप्रदर्शन, शांति सभा की जाये। अपने नामों वालों के अलावा आप जिस समाज में रहते हैं उस को यह अहसास कराया जाये कि आप इन संगठनों के साथ नहीं हैं। भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश, इंडोनेशिया, कंपूचिया, थाई लैंड, मलेशिया, चीन, अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, ईराक़, सीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, अल्जीरिया, मिस्र, तुर्की, स्पेन, रूस, इटली, फ़्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, डेनमार्क, हॉलैंड, यहाँ तक कि इस्लामी देशों से भौगोलिक रूप से कटे संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी आतंकवादी घटनाएँ हो रही हैं, होती आ रही हैं। ऐसे हजारों साल से होते चले आ रहे बर्बर हत्याकांडों के विरोध में आप कभी खड़े हुए हैं ? आपने कभी भी इन राक्षसों और इनकी प्रेरणास्रोत राक्षसी विचारधारा से स्वयं को अलग माना है ? आपने कभी ऐसा सोचा भी है ? या आप उस समय हकले अभिनेता की तरह ड ड ड ड ड डा डा डायलॉग भूल गया का बहाना करते हैं ?
जब आप संसार भर में किसी दूसरे मुसलमान से मिलते समय बिरादरे-इस्लाम से मुसाफ़ा { इस्लामी ढंग से हाथ मिलाना } करते हैं। उसके कारण आश्वस्ति पाते हैं तो इस्लाम से दुखी-खिन्न लोगों की बेचैनी भी तो आपकी होगी। आप मज़हब के कारण सारे विश्व में राष्ट्रीयता का विरोध करते हैं। आपके सारे प्रमुख मौलाना स्वयं कहते हैं कि इस्लाम उम्मा { इस्लामी बंधुत्व } की भावना रखता है। इस्लाम की दृष्टि में सारे मुसलमान भाई हैं, एक हैं। इस्लाम का राष्ट्रवाद में विश्वास नहीं है तो राष्ट्रवाद में विश्वास रखने वाले लोग आपको विदेशी एजेंट समझते हैं तो क्या ग़लत करते हैं ? ऐसे लोग आपको अपने देशों में नहीं देखना चाहते हैं तो इसमें ग़लत क्या है ? आपके जैसे नाम वाले जिस किताब, जिस विचारधारा के कारण इतने हिंसक हैं उसे सभ्य समाज समझता है। इंटरनैट के काल में सब कुछ उपलब्ध है। सभ्य समाज उसे पढ़ भी रहा है। आप और आप जैसे बहुतों के यह कहने "आतंकवादी मुसलमान नहीं हैं" लोग समझते हैं कि उनको कहाँ से प्रेरणा मिल रही है। लोग सच जानते हैं।
ओ मुसलमानों तुम गैर मुसलमानों से लड़ो. तुममें उन्हें सख्ती मिलनी चाहिये { 9-123 }
और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो { 2-191 }
काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 }
ऐ नबी ! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 }
अल्लाह ने काफिरों के रहने के लिये नर्क की आग तय कर रखी है { 9-68 }
उनसे लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न आखिरत पर; जो उसे हराम नहीं जानते जिसे अल्लाह ने अपने नबी के द्वारा हराम ठहराया है. उनसे तब तक जंग करो जब तक कि वे जलील हो कर जजिया न देने लगें { 9-29 }
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और गलत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है { 3-110 }
जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिये ने जन्नत हराम कर दी है. उसका ठिकाना जहन्नुम है { 5-72 }
और तुम उनको जहां पाओ कत्ल करो { 2-191 }
काफिरों से तब तक लड़ते रहो जब तक दीन पूरे का पूरा अल्लाह के लिये न हो जाये { 8-39 }
ऐ नबी ! काफिरों के साथ जिहाद करो और उन पर सख्ती करो. उनका ठिकाना जहन्नुम है { 9-73 और 66-9 }
अल्लाह ने काफिरों के रहने के लिये नर्क की आग तय कर रखी है { 9-68 }
उनसे लड़ो जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न आखिरत पर; जो उसे हराम नहीं जानते जिसे अल्लाह ने अपने नबी के द्वारा हराम ठहराया है. उनसे तब तक जंग करो जब तक कि वे जलील हो कर जजिया न देने लगें { 9-29 }
तुम मनुष्य जाति में सबसे अच्छे समुदाय हो, और तुम्हें सबको सही राह पर लाने और गलत को रोकने के काम पर नियुक्त किया गया है { 3-110 }
जो कोई अल्लाह के साथ किसी को शरीक करेगा, उसके लिये ने जन्नत हराम कर दी है. उसका ठिकाना जहन्नुम है { 5-72 }
आप इससे पूरी तरह समझ लीजिये कि अब बात ग ग ग गलती हो गयी, ड ड ड ड ड डा डा डायलॉग भूल गया से बहुत आगे आ गयी है। विश्व भर का सभ्य समाज खौल रहा है। उसकी मुट्ठियां भिंची हुई हैं और वो तमतमाया हुआ है। आप काल की पदचाप सुन पा रहे होंगे। सारे संसार में आप जैसे नाम वालों के विरोध में ज़बरदस्त अंतर्धारा बह रही है। जगह-जगह ये दिखाई भी दे रही है। जर्मनी में नक़ाब पहने हुए मोटरसाइकिल सवार नवयुवकों ने सीरियाई, ईराक़ी शरणार्थियों के गोलियां मारनी शुरू कर दी हैं। इन हिंसक आक्रमणों के विरोध में विश्व भर में युद्ध के नगाड़े बज रहे हैं। सभ्य समाज इस किताब और किताब से निकली विचारधारा का उपाय जिस दिशा में तलाश कर रहा है उसे सम्भवतः देख पा रहे होंगे। समाचार की अंतिम पंक्ति पर ध्यान दीजिये। "मेरे मुस्लिम होने से लोगों का इस तरह चिंतित होना मेरे लिये ख़ौफ़नाक है "
अर्थात सभ्य संसार तय करने के कगार पर हैं कि ख़ौफ़ ही इस समस्या का इलाज है। आप पुरज़ोर और स्पष्ट दिखाई देने वाले प्रयास से इस समस्या से स्वयं को दूर नहीं करेंगे तो आप पायेंगे कि सभ्य समाज आपसे दूरी बरत रहा है। वो आपकी दुकान पर नहीं जायेगा। आपको काम नहीं देगा। शायद आपको माल बेच देगा मगर आपसे कुछ ख़रीदेगा नहीं यानी आपसे आर्थिक दूरी बरतेगा। सभ्य समाज आपके जैसे नाम वालों का भरपूर सैन्य प्रतिकार तो करेगा ही करेगा मगर ध्यान रखें एक जैसे नामों के कारण आप अभी इसकी चपेट में आ सकते हैं। आप अगर सभ्य समाज के साथ ताल ठोक कर इन राक्षसों के विरोध में आगे नहीं आये तो आप भी अपने जैसे नाम वालों के साथ ख़ौफ़ का शिकार बन जाने को अभिशप्त होंगे।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
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