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गुरुवार, 28 जुलाई 2016

:::::::::::::मिस्र के तहरीर चौक से देवबंद के रणखंडी मंदिर तक

मिस्र के तहरीर चौक से:----अभी कुछ वर्ष पहले ही मिस्र में तहरीर चौक से प्रारम्भ हुई क्रांति में उमड़े जनज्वार के परिणामस्वरूप मुस्लिम ब्रदरहुड सत्ता में आया। इसने ऐसे-ऐसे क़ानून लागू किये, ऐसा विकट मरकट-नृत्य { बंदर-नाच } किया कि जनता त्राहि-त्राहि कर उठी और सेना का दुबारा समर्थन कर सत्ता में बिठाया। इसके बाद जनरल फ़तह अल सीसी ने इस्लामी विश्व के सबसे प्रतिष्ठित केंद्र अल अजहर यूनिवर्सिटी गये। यहाँ यह जानकारी आवश्यक है कि अल अजहर यूनिवर्सिटी क्या है ? यहाँ से कैसे-कैसे फ़तवे आये हैं इसको जानने से इस केंद्र की मानसिकता बल्कि मानसिक सीमा-क्षमता का अनुमान लग सकेगा। अल अज़हर ने फ़तवे दिए हैं। 


मुसलमान औरतों का केला, खीरा ख़रीदना हराम है। इन फलों का आकार के लिंग जैसा होने के कारण उनमें मानसिक भ्रष्टता आती है। 

किसी औरत को समुद्र में स्नान नहीं करना चाहिये। समन्दर पुल्लिंग है और स्त्री के शरीर के स्पर्श से उसमें उत्तेजना आ सकती है। 

किसी भी आयु की बच्ची से शादी की जा सकती है बशर्ते वह मर्द के बदन का बोझ बर्दाश्त कर ले। 

इन मूढ़ लोगों का ऐसी चित्र-विचित्रताओं के साथ-साथ काफ़िर वाजिबुल क़त्ल, क़त्ताल फ़ी सबीलिल्लाह { अल्लाह की राह में क़त्ल करो } जिहाद फ़ी सबीलिल्लाह { अल्लाह की राह में जिहाद करो } में भी अटूट विश्वास है। इसी दर्शन को व्यवहार में फैलाने में मुस्लिम ब्रदरहुड लगा था। इस दर्शन की किताबों क़ुरआन, हदीस इत्यादि का यहाँ अध्ययन किया जाता है। 


जनरल फ़तह अल सीसी ने अल अज़हर यूनिवर्सिटी के छात्रों, उलमा के बीच कहा कि यह असम्भव है कि 160 करोड़ मुसलमान 600 करोड़ अमुस्लिमों को ख़त्म करने की इच्छा रखें। { यही अस्ली समस्या है और यही संसार भर में अशांति का कारण है } जनरल फ़तह अल सीसी ने इस जिहादी विचारधारा के प्रसार पर विभिन्न प्रतिबन्ध लगाये हैं। उलमा को आदेश दिये गए हैं कि वह सरकारी मस्जिदों में सरकार द्वारा अधिकृत उपदेश ही दें। यहाँ तर्क-बुद्धि तो यह कहती है कि सरकारी मस्जिदों में सरकारी उपदेश ही देने से यह समस्या समाप्त नहीं हो सकती। ये उलमा-मुल्ला निजी चर्चा में जो कुछ कहेंगे उसे कैसे रोका जायेगा ? 



यह समस्या मुल्ला-जनित नहीं है। देखना होगा यह हत्यारा दर्शन आ कहाँ से रहा है ? उसकी जड़ कहाँ है ? केवल पत्तियां नोचने से जड़ नष्ट नहीं हो पायेगी ? 160 करोड़ मुसलमानों का 600 करोड़ अमुस्लिमों को ख़त्म करने की इच्छा रखना ही यह समझने के लिये पर्याप्त है कि समस्या बहुत गंभीर है। इस पागलपन को उपजाने वाली विषबेल की जड़ काटने की जगह पत्तियों के नोचने से कुछ नहीं होगा। जैसे ज़ाकिर नायक के टीवी चैनल को बंद करना भी विषबेल की पत्तियां नोचना है। ऐसे हर ज़ाकिर की खाट खड़ी होना, उसकी ऐसी दुर्गति होना कि अगला ज़ाकिर बनने की इच्छा रखें वाले की रूह तक कांप उठे इसका हल है। 160 करोड़ मुसलमान 600 अमुस्लिमों को ख़त्म करने की इच्छा रखें यह असम्भव ही नहीं है बल्कि असहनीय है। ऐसी हर खोपड़ी को भेजे सहित भयावह रूप से दण्डित किये बिना विश्व के शांतिपूर्ण जीवन का मार्ग प्रशस्त नहीं होगा। मुल्ला-उलमा जब तक स्थानीय स्तर पर रगड़े नहीं जायेंगे कुछ बदलाव नहीं आने का। 


देवबंद के रणखंडी मंदिर तक:-----परसों देवबंद नगर के रणखंडी रोड पर शास्त्री चौक के पास बने मंदिर में मूर्तियां तोड़ दी गयीं। सादिक़ नाम का 21 वर्षीय युवक पकड़ लिया गया है और राहत ख़ान और ताहिर लुहार फ़रार हो गये। नई घटना नहीं है और पहले भी ऐसा होता रहा है। अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में यह कुकृत्य सैकड़ों वर्षों से होता आया है। नयापन केवल इसमें इतना है कि सादिक़ ने यह दुस्साहस अच्छी भरी-पूरी हिन्दू बस्ती में किया है। राक्षसी धावे अब अपने संख्या-बल की चिंता किये बिना होने लगे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। कोई दूसरे पक्ष पर अंधाधुंध नहीं टूट पड़ता। ऐसा तभी सम्भव है जब आक्रमणकारी को अपनी विजय अथवा सुरक्षित लौट आने या शत्रु के घोर कायर होने की आश्वस्ति हो। कृपया सोचिये कि हमारे व्यवहार में क्या ऐसा है कि राक्षसी धावे बढ़ते जा रहे हैं। आक्रमण के लिये शत्रु की क्षमता से पहले हमारी अक्षमता-अकर्मण्यता ज़िम्मेदार है। 

तुफ़ैल चतुर्वेदी 





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